विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2025: अब थैरेपी शर्म नहीं, समझदारी है

हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस साल का थीम है — “आपातकाल और आपदाओं में मानसिक स्वास्थ्य तक पहुंच”। यह थीम हमें याद दिलाती है कि हर आपदा पानी या भूकंप जैसी नहीं होती — कई बार संकट हमारे अपने मन के अंदर होता है।
कोविड के बाद जागरूकता आई
भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बातचीत अब धीरे-धीरे खुलकर होने लगी है। खासकर कोविड-19 महामारी के बाद, जब अकेलापन, डर और अनिश्चितता हर घर तक पहुंची, तो लोगों ने महसूस किया कि मानसिक स्वास्थ्य कोई दूर की बात नहीं है — यह हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है।
साल 2020 से 2023 के बीच भारत में “मानसिक स्वास्थ्य” से जुड़ी गूगल सर्च तीन गुना बढ़ गईं। सरकारी हेल्पलाइन Tele-MANAS को लाखों कॉल्स आए। ऑनलाइन काउंसलिंग की मांग 200% से भी ज्यादा बढ़ गई। अब थैरेपी यानी इलाज लेना कोई शर्म की बात नहीं रह गई — यह ज़रूरत बन गई।
छात्र और युवा सबसे ज्यादा प्रभावित
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (NIMHANS) की रिपोर्ट के मुताबिक, हर 5 में से 1 भारतीय किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा है। खासतौर पर छात्र और युवा पेशेवर सबसे ज्यादा परेशान हैं।
छात्रों पर पढ़ाई का दबाव, प्रतियोगिता और पैसों की चिंता भारी पड़ रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में 13,000 से ज्यादा छात्र आत्महत्या कर बैठे — यानी हर दिन औसतन 35 छात्र।
वहीं कॉर्पोरेट सेक्टर के युवा भी बेहतर नहीं हैं। Deloitte की 2024 रिपोर्ट कहती है कि भारत के 80% मिलेनियल्स और Gen Z कर्मचारी हफ्ते में कम से कम एक बार तनाव महसूस करते हैं। हर समय “ऑन” रहने की आदत ने उन्हें थका दिया है।
गांवों में स्थिति और भी गंभीर
जहां शहरों में थैरेपी और काउंसलिंग पर चर्चा हो रही है, वहीं ग्रामीण भारत में अभी भी किफायती और प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं दूर की बात हैं। जब बाढ़, बीमारी या किसी की मौत जैसी आपदाएं आती हैं, तो गांवों में लोगों के पास मदद लेने का कोई जरिया नहीं होता।
छोटे कदम, बड़ी उम्मीद
हालांकि हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं। Tele-MANAS हेल्पलाइन अब 20 भाषाओं में मुफ्त काउंसलिंग देती है। कई दफ्तर अब mental health days और कर्मचारियों के लिए काउंसलिंग सुविधाएं दे रहे हैं। स्कूलों में मनोवैज्ञानिक और well-being clubs की शुरुआत हो रही है। ऑनलाइन ऐप्स के जरिए लोग अब आसानी से वीडियो कॉल पर थैरेपी ले पा रहे हैं।
सबसे बड़ी बात — सोच बदल रही है। अब युवा यह मानने लगे हैं कि थैरेपी लेना कमजोरी नहीं, समझदारी है।
अब आगे क्या?
विशेषज्ञ मानते हैं कि अब सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि बचाव पर भी ध्यान देना जरूरी है — यानी स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को तनाव से निपटना, ध्यान लगाना और भावनाओं को समझना सिखाना होगा। थैरेपी सस्ती बनानी होगी, और शिक्षकों, नर्सों व गांव के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना होगा ताकि वो समय रहते मदद कर सकें।
अंत में एक बात याद रखने लायक है — हर आपदा सिर्फ न्यूज में नहीं आती। कई आपदाएं हमारे भीतर होती हैं — तनाव, अकेलापन, दिल टूटना, या नौकरी की चिंता। और किसी देश को सही मायने में ठीक करना है, तो सिर्फ इमारतें नहीं, दिल और दिमाग भी संभालने होंगे।





