Coldrif सिरप मामला: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की स्वतंत्र जांच की याचिका
मध्य प्रदेश में खांसी की एक सिरप पीने से 22 बच्चों की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता अधिवक्ता विशाल तिवारी ने एक न्यायिक आयोग या विशेषज्ञ समिति से स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि मौतों के लिए मध्य प्रदेश और तमिलनाडु एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, जबकि जांच में कोई ठोस प्रगति नहीं हो रही है। Coldrif नाम की यह सिरप अब प्रतिबंधित की जा चुकी है, जिसकी निर्माता कंपनी तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित Sresan Pharmaceuticals है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए अधिवक्ता तिवारी से यह पूछ लिया कि उन्होंने अब तक कितनी बार ऐसी जनहित याचिकाएं दायर की हैं। इसके बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो किसी अन्य मामले में उपस्थित थे, ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता सिर्फ अखबार की खबरों के आधार पर कोर्ट पहुंच जाते हैं, उनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि हमें राज्यों पर भरोसा करना चाहिए और तमिलनाडु सरकार जरूरी कदम उठाएगी।
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि पूरे देश में Coldrif सिरप के मौजूदा स्टॉक को जब्त कर जांच के लिए भेजा जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसमें कोई जहरीला रसायन न हो। साथ ही, FIR को CBI को ट्रांसफर कर केंद्रीय स्तर पर जांच कराने की अपील की गई थी। Coldrif सिरप में Diethylene Glycol नाम का जहरीला केमिकल पाया गया है, जो आमतौर पर इंडस्ट्रियल सॉल्वेंट में इस्तेमाल होता है और इसका सेवन जानलेवा हो सकता है।
इस मामले में मध्य प्रदेश पुलिस ने एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है। वहीं, छिंदवाड़ा जिले के परासिया उपखंड के सिविल अस्पताल में कार्यरत बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को निलंबित कर गिरफ्तार किया गया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने निजी क्लिनिक में कई बच्चों को Coldrif सिरप लिखी थी, जिससे उनकी मौत हुई। तमिलनाडु स्थित दवा कंपनी Sresan Pharmaceuticals पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएं 105 और 276, और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 27A के तहत मामला दर्ज किया गया है।
यह मामला देश में बच्चों की दवा सुरक्षा और दवा विनियमन प्रणाली को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। कोर्ट का भले ही यह मानना रहा हो कि राज्यों को कार्रवाई का मौका मिलना चाहिए, लेकिन पीड़ित परिवारों और बच्चों की जान गंवाने वाले इलाकों में लोगों की चिंता अब भी बरकरार है।





