Hindi Newsportal

क्या है ब्लू इकॉनमी और कैसे बदल रही है भारत की आर्थिक तस्वीर?

10

भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था एक नए बदलाव की ओर बढ़ रही है। मछली पालन और समुद्री संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग ने पिछले कुछ दशकों में भारत को मत्स्य उत्पादन में विश्व में अग्रणी देशों में शामिल कर दिया है। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल है — क्या भारत की ‘नीली क्रांति’ इस बदलाव के बीच संतुलन साध पाएगी?

क्या है ब्लू इकॉनमी और क्यों है यह जरूरी?

ब्लू इकॉनमी का मतलब है – मछली पालन और समुद्री संसाधनों के व्यापारिक दोहन में तेज़ वृद्धि। भारत में इसकी शुरुआत 1985 में सातवीं पंचवर्षीय योजना के तहत हुई थी। उस वक्त डॉ. हिरालाल चौधरी और डॉ. अरुण कृष्णन की अगुवाई में Fish Farmers Development Agency (FFDA) की स्थापना की गई थी। आज भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश बन चुका है और इसकी ‘ब्लू इकॉनमी’ का मूल्य 80 अरब डॉलर से अधिक हो गया है।

तेजी से बढ़ रही है वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था

वैश्विक स्तर पर अगर बात करें तो समुद्री अर्थव्यवस्था यानी ‘ओशन इकॉनमी’ का आकार 1.5 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा हो चुका है और यह 2030 तक 3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। इसमें शिपिंग, तेल-गैस, समुद्री पर्यटन, अपतटीय ऊर्जा और मत्स्य पालन शामिल हैं। लेकिन इस आर्थिक विकास की दौड़ ने समुद्री जैवविविधता पर गहरा असर डाला है।

समुद्र की सेहत पर मंडरा रहा है खतरा

समुद्री विकास के साथ-साथ कई संकट भी सामने आ रहे हैं। मैंग्रोव जंगल, कोरल रीफ और जैवविविधता हॉटस्पॉट तेजी से नष्ट हो रहे हैं। झींगा पालन और समुद्र के किनारे की खेती ने पारंपरिक मछुआरा समुदायों को विस्थापित किया है। साथ ही, केमिकल और एंटीबायोटिक्स के अत्यधिक उपयोग ने समुद्री खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है।

सस्टेनेबल ब्लू इकॉनमी की जरूरत

अब समय आ गया है कि भारत समेत पूरी दुनिया ‘सस्टेनेबल ब्लू इकॉनमी’ की ओर बढ़े — यानी ऐसा समुद्री विकास जो आर्थिक लाभ तो दे, लेकिन पर्यावरण की कीमत पर नहीं। इसमें समुद्र के इकोसिस्टम की रक्षा, सामाजिक न्याय और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों का संरक्षण शामिल है। संयुक्त राष्ट्र के SDG 14 लक्ष्य के तहत 2030 तक दुनिया के 30% समुद्री क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र (MPA) बनाना तय किया गया है, लेकिन अब तक केवल 7.5% ही संरक्षित हो पाया है।

भारत की नीतियाँ: कितनी तैयार, कितनी अधूरी?

भारत सरकार ने समुद्री विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) से मछुआरों को आर्थिक सहायता दी जा रही है। भारत इंडियन ओशन रीजन (IOR) में सहयोग बढ़ा रहा है और अंतरराष्ट्रीय समझौतों जैसे IMO 2023, UNCLOS, और High Seas Treaty में सक्रिय भागीदारी कर रहा है। लेकिन अवैध मछली पकड़ना, तटीय क्षेत्रों में शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।

आर्थिक विकास बनाम पारिस्थितिकी

अब सवाल यह है कि क्या भारत केवल आर्थिक लाभ की ओर भागेगा या पर्यावरण और पारिस्थितिकीय संतुलन को भी महत्व देगा? विशेषज्ञों के अनुसार, नेचर-बेस्ड समाधान — जैसे मैंग्रोव पुनर्वनीकरण, समुद्री कार्बन कैप्चर और सामुदायिक आधारित मत्स्य पालन — भविष्य में संतुलन बनाने में मदद कर सकते हैं।

समुद्र अब सिर्फ एक संसाधन नहीं, बल्कि जलवायु संकट से जूझ रही दुनिया के लिए एक समाधान भी है। भारत की नीली क्रांति ने देश को आर्थिक मजबूती दी है, लेकिन अब उसे एक नई सोच और दिशा की जरूरत है — जो समुद्र को संरक्षण के साथ उपयोग करने की प्रेरणा दे।

अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में यह क्रांति खुद अपने ही बोझ से चरमरा सकती है।

You might also like

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.