हर साल 21 मई को भारत राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस (Anti-Terrorism Day) मनाता है। यह दिन सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि देश की उस सामूहिक चेतना और संकल्प का प्रतीक है, जो आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने के लिए खड़ी होती है। यह दिन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि के रूप में भी जाना जाता है, जो 1991 में एक आतंकवादी हमले में शहीद हुए थे।
आज के दौर में जब आतंकवाद वैश्विक खतरा बन चुका है, भारत उन चंद देशों में शामिल है जिसने इसके खिलाफ न केवल कड़ा रुख अपनाया, बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक, एयरस्ट्राइक, और हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर जैसे निर्णायक अभियान चलाकर दुनिया को दिखा दिया कि अब भारत सिर्फ सहन नहीं करेगा—बल्कि जवाब भी देगा।
भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए प्रमुख कानून
भारत में आतंकवाद की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए कई प्रभावी कानून बनाए गए हैं। ये कानून देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने और आतंकवादी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट – UAPA (1967)
अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट, जिसे UAPA कहा जाता है, 1967 में लागू किया गया था। यह कानून आतंकवादी गतिविधियों और संगठनों पर रोक लगाने के लिए बनाया गया है। समय के साथ इसे संशोधित कर और कठोर बनाया गया है ताकि आतंकवाद से निपटने में और अधिक प्रभावी कदम उठाए जा सकें। इस कानून के तहत सरकार आतंकवादी संगठन घोषित कर सकती है और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कर सकती है। इसके अलावा संदिग्धों की गिरफ्तारी और जांच के लिए भी विशेष प्रावधान मौजूद हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA, 1980)
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) 1980 में बनाया गया था, जो देश की सुरक्षा के लिए खतरा समझे जाने वाले व्यक्तियों को बिना मुकदमे के कुछ समय के लिए हिरासत में रखने का अधिकार देता है। इस अधिनियम के तहत सुरक्षा एजेंसियां किसी भी संदिग्ध को एक निर्धारित अवधि तक हिरासत में रख सकती हैं, जिससे वे संभावित खतरे को नियंत्रित कर सकें। यह कानून आतंकवाद, घुसपैठ और अन्य गंभीर सुरक्षा खतरों के खिलाफ प्रभावी सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
टाडा (TADA) और पोटा (POTA)
टाडा (टेररिस्ट एक्टिविटीज़ डिटेंशन एक्ट) और पोटा (प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट) 1980 और 2000 के दशक में आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए बनाए गए विशेष कानून थे। ये कानून आतंकवादियों और उनके समर्थकों के खिलाफ सख्त सजा और कठोर जांच के प्रावधान लाते थे। हालांकि, इन कानूनों के दुरुपयोग के कारण उन्हें बाद में समाप्त कर दिया गया। फिर भी, टाडा और पोटा ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सुरक्षा रणनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आतंकवाद से लड़ने वाली प्रमुख भारतीय एजेंसियां
भारत में आतंकवाद की बढ़ती चुनौती के बीच कई विशेष एजेंसियां काम कर रही हैं, जो आतंकवादी गतिविधियों की रोकथाम, जांच और प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये एजेंसियां देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए समर्पित हैं और आतंकवाद से जुड़ी हर चुनौती का सामना करने के लिए प्रशिक्षित हैं।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)
राष्ट्रीय जांच एजेंसी, जिसे NIA कहा जाता है, भारत की शीर्ष आतंकवाद-रोधी जांच एजेंसी है। इसका गठन 2009 में किया गया था ताकि केंद्र सरकार आतंकवाद से संबंधित मामलों की प्रभावी जांच कर सके। NIA देश भर में आतंकवादी घटनाओं की जांच करती है और आतंकवादी नेटवर्क को खत्म करने के लिए विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करती है। यह एजेंसी आतंकवाद के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और जांच में विशेषज्ञता रखती है।
इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB)
इंटेलिजेंस ब्यूरो भारत की प्रमुख घरेलू खुफिया एजेंसी है। यह एजेंसी आतंरिक सुरक्षा से जुड़ी सूचनाएं एकत्र करती है और आतंकवाद, उग्रवाद तथा देश के अन्य खतरों पर नजर रखती है। IB की भूमिका खुफिया जानकारी जुटाने और विश्लेषण करने की होती है ताकि किसी भी संभावित खतरे को समय रहते रोका जा सके। यह एजेंसी आतंकवाद को फैलने से रोकने में अहम भूमिका निभाती है।
रॉ (RAW)
रॉ, यानी रीसर्च एंड एनालिसिस विंग, भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी है। यह एजेंसी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी नेटवर्क, विदेशी खुफिया गतिविधियों और देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक बाहरी तत्वों पर नजर रखती है। RAW की मदद से भारत सीमा पार से आने वाले आतंकवादी खतरों का मुकाबला करता है और विदेशी सहयोग के माध्यम से आतंकवाद को कमजोर करता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG)
राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, जिसे NSG के नाम से जाना जाता है, भारत का विशेष कमांडो बल है। इसे आतंकवादी हमलों, अपहरण और उच्चस्तरीय सुरक्षा खतरे से निपटने के लिए तैनात किया जाता है। NSG को “ब्लैक कैट्स” के नाम से भी जाना जाता है। यह बल तेजी से कार्रवाई कर आतंकवादी घटनाओं को दबाने में माहिर है और संकट की स्थिति में देश की पहली प्रतिक्रिया टीम होती है।
स्टेट एंटी टेररिज्म स्क्वॉड्स (ATS)
स्टेट एंटी टेररिज्म स्क्वॉड्स (ATS) राज्य स्तर पर काम करने वाली आतंकवाद निरोधक इकाइयाँ होती हैं। हर राज्य में ATS आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच और रोकथाम करती है। ये इकाइयाँ स्थानीय खुफिया एकत्र करती हैं, संदिग्धों की निगरानी करती हैं और आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए कार्रवाई करती हैं। ATS की भूमिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण है क्योंकि वे जमीनी स्तर पर प्रभावी होते हैं।
भारत की 4 सबसे बड़ी आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयाँ:
ऑपरेशन ब्लू स्टार: जब सेना ने स्वर्ण मंदिर से खालिस्तानी आतंक का सफाया किया
6 जून 1984 को भारतीय सेना ने अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर परिसर में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया, जिसका उद्देश्य था खालिस्तान समर्थक और दमदमी टकसाल के प्रमुख जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों को मार गिराना। पंजाब उस समय उग्रवाद की चपेट में था, और भिंडरावाले ने हरिमंदिर साहिब परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया था। इस चुनौतीपूर्ण अभियान को लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बरार के नेतृत्व में अंजाम दिया गया, जिन्हें 31 मई को छुट्टी पर निकलने से ठीक पहले इस मिशन के लिए बुलाया गया था।
ऑपरेशन का नेतृत्व जनरल सुंदरजी, जनरल दयाल और जनरल बरार कर रहे थे। रात के अंधेरे में हमला शुरू हुआ, लेकिन आतंकियों की मजबूत किलेबंदी और ऑटोमैटिक हथियारों की वजह से सेना को कड़ा प्रतिरोध झेलना पड़ा। अकाल तख्त के पास भारी गोलीबारी हुई, जिसमें कई सैनिक शहीद हो गए। लेफ्टिनेंट कर्नल इसरार रहीम खां की बटालियन ने मोर्चा संभाला और कई ठिकानों को ध्वस्त किया, लेकिन आतंकियों की प्लानिंग इतनी मजबूत थी कि वे भूमिगत सुरंगों से लगातार हमला करते रहे।
इस ऑपरेशन के बाद पंजाब में उग्रवाद की कमर तोड़ी गई, लेकिन यह अभियान धार्मिक स्थल पर सैन्य कार्रवाई होने के कारण काफी विवादों में भी रहा और इसके कई राजनीतिक और सामाजिक असर लंबे समय तक देखे गए।
सर्जिकल स्ट्राइक (2016) और एयरस्ट्राइक (2019): आतंक के खिलाफ भारत के निर्णायक जवाब
18 सितंबर 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 19 भारतीय जवान शहीद हो गए। इस हमले के जवाब में भारत ने 28-29 सितंबर की रात पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में घुसकर आतंकियों के लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक की। इस गुप्त सैन्य अभियान में भारतीय सेना के कमांडोज़ ने आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाया और उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। यह पहली बार था जब भारत ने आधिकारिक रूप से सीमापार जाकर कार्रवाई की पुष्टि की, जिसने देश की आतंकवाद के खिलाफ नीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाया।
इसके बाद 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में एक आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए। जवाब में 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की। इस कार्रवाई में बड़ी संख्या में आतंकियों के मारे जाने का दावा किया गया और इसे एक सटीक और साहसिक सैन्य कार्रवाई के रूप में देखा गया।
दोनों ही कार्रवाइयों ने भारत की आतंकवाद के खिलाफ ‘नई रणनीति’ को दुनिया के सामने रखा, जिसमें अब केवल बचाव नहीं बल्कि हमले की नीति भी अपनाई जा रही है।
1993 मुंबई बम धमाकों की जांच और कार्रवाई: दशकों तक चला भारत का सबसे बड़ा आतंक विरोधी अभियान
12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इन हमलों में 250 से अधिक लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक घायल हुए। इस आतंकी साजिश के पीछे अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन जैसे नाम सामने आए, जिन्होंने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के साथ मिलकर इस हमले की योजना बनाई थी।
हमले के बाद जांच एजेंसियों के सामने यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण मामला था, जिसमें स्थानीय आपराधिक नेटवर्क, अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों और अवैध हथियारों की आपूर्ति से जुड़े कई स्तरों को खंगालना पड़ा। मुंबई पुलिस की अपराध शाखा, सीबीआई और बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने मिलकर इस मामले की गहराई से जांच की।
वर्षों तक चली इस जांच में सैकड़ों लोगों से पूछताछ हुई, कई अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया और लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद कई दोषियों को सजा सुनाई गई। टाइगर मेमन और दाऊद इब्राहिम अब भी फरार हैं और भारत की टॉप मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल हैं। उन्हें पकड़ने के लिए इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया है और भारत ने कई बार पाकिस्तान से उनके प्रत्यर्पण की मांग की है।
1993 धमाके सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं थे, बल्कि उन्होंने भारत की आंतरिक सुरक्षा, जांच प्रणाली और आतंकवाद के प्रति नीति को जड़ से हिला दिया। इसके बाद भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कठोर कानून बनाए, जैसे टाडा (TADA), और बाद में यूएपीए (UAPA) को और मजबूत किया गया। यह केस भारत की आतंकवाद से लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
ऑपरेशन सिंदूर
ऑपरेशन सिंदूर भारत द्वारा 7 मई 2025 को पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoJK) में स्थित आतंकवादी ठिकानों पर किए गए एक निर्णायक सैन्य अभियान का नाम है। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी।
इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने नौ प्रमुख आतंकी शिविरों को निशाना बनाया। इसमें अत्याधुनिक हथियारों जैसे M-777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर, स्वदेशी ‘आकाश’ मिसाइलें और आत्मघाती ड्रोन का उपयोग किया गया। सिर्फ तीन मिनट में 13 दुश्मन पोस्टों को ध्वस्त किया गया, जिससे पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई क्षीण हो गई।
ऑपरेशन सिंदूर की योजना और क्रियान्वयन में तीनों सेनाओं की संयुक्त भागीदारी रही। इसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के उपग्रहों से प्राप्त रीयल-टाइम खुफिया जानकारी का भी उपयोग किया गया। इस अभियान ने भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत विकसित रक्षा तकनीकों की क्षमता को प्रदर्शित किया।
इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान ने ड्रोन और यूसीएवी के माध्यम से भारतीय ठिकानों पर हमले किए, जिन्हें भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली ने प्रभावी ढंग से निष्क्रिय कर दिया। ऑपरेशन सिंदूर भारत की आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का प्रतीक बन गया है, जिसने देश की रक्षा रणनीति में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है।
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