हर साल 30 मई को हम हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारत में जनजागरण की शुरुआत का प्रतीक है? साल था 1826 और तारीख थी 29 मई, जब पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से भारत का पहला हिंदी अख़बार ‘उदंत मार्तंड’ प्रकाशित किया था। न इंटरनेट था, न टीवी और न ही रेडियो—फिर भी उस छोटी-सी छपाई ने एक अद्भुत क्रांति की शुरुआत की।
आज जब हम हिंदी पत्रकारिता को सेलिब्रेट करते हैं, तो ये केवल एक भाषा की बात नहीं है। ये उस हिम्मत, सच की तलाश, और समाज को बदलने के जुनून की कहानी है, जो हर सच्चे पत्रकार के भीतर अब भी ज़िंदा है।
‘उदंत मार्तंड’: हिंदी पत्रकारिता का पहला सूरज
ब्रिटिश राज के दौर में अखबारों पर अंग्रेज़ी और बंगाली का वर्चस्व था। ऐसे में हिंदी में अखबार निकालना एक क्रांतिकारी फैसला था। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे मुमकिन कर दिखाया। 29 मई 1826 को ‘उदंत मार्तंड’ का पहला अंक छपा, जो हिंदी बोलने वालों के लिए पहली बार किसी समाचार पत्र की भाषा बना। हालाँकि आर्थिक तंगी और सरकार की बेरुख़ी की वजह से ये अखबार सिर्फ 79 अंक ही निकाल सका, लेकिन इसने एक ऐसी आग जलाई जो कभी बुझी नहीं। यह सिर्फ एक अखबार नहीं था, बल्कि हिंदी समाज के लिए पहली बुलंद आवाज़ थी।
आज़ादी की लड़ाई में पत्रकारिता की ताकत
हिंदी पत्रकारिता ने आज़ादी की लड़ाई में एक मुख्य हथियार का काम किया। ‘आज’, ‘हिंदुस्तान’, ‘प्रताप’, ‘नवजीवन’ जैसे अखबारों ने देशवासियों को जागरूक किया, जोड़ा और जोश से भर दिया। गांधी जी, तिलक, भगत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे नेताओं ने अपनी लेखनी से इंकलाब की लौ जगाई। उन दिनों अखबार पढ़ना एक तरह से बगावत माना जाता था। लेकिन पत्रकारों ने कभी डर को रास्ते में नहीं आने दिया। वे जेल गए, पीटे गए, लेकिन सच्चाई की मशाल नहीं छोड़ी।
आज की पत्रकारिता: अवसर और असमंजस
आज हमारे पास है — यूट्यूब चैनल, इंस्टाग्राम रील्स, ट्विटर स्पेस, पॉडकास्ट और न्यूज़ ऐप्स। अब कोई भी मोबाइल लेकर पत्रकार बन सकता है।
रवीश कुमार, सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप, पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे नाम आज घर-घर में चर्चा का विषय हैं।
लेकिन साथ ही कुछ कड़वे सवाल भी हैं —
क्या खबरें अब सिर्फ टीआरपी और सनसनी के लिए बन रही हैं?
क्या पत्रकारिता अब जनता से दूर, स्टूडियो की बहसों तक सिमट गई है?
क्या सोशल मीडिया ने सच्चाई से ज्यादा वायरल होने को अहमियत दी है?
न्यू मीडिया का युग: संभावनाएँ और जिम्मेदारियाँ
आज भारत की सबसे बड़ी आबादी हिंदी भाषी है और यही हिंदी पत्रकारिता की सबसे बड़ी ताकत है।
नए ज़माने में स्ट्रिंगर रिपोर्टिंग, माइक्रो ब्लॉगिंग, और सिटी लोकल जर्नलिज़्म तेजी से उभर रहा है। यूट्यूब और ब्लॉग ने आम जनता को भी पत्रकार बनने का मंच दे दिया है।
लेकिन याद रखना ज़रूरी है—प्लेटफॉर्म बदल सकते हैं, लेकिन पत्रकारिता का मकसद नहीं। सच्चाई, जनसरोकार और साहस… यही वो तीन मूल हैं जो किसी भी युग की पत्रकारिता को ज़िंदा रखते हैं।
हिंदी पत्रकारिता दिवस सिर्फ अतीत की याद नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने का दिन है। हम पत्रकारिता के उस दौर से निकले हैं जहाँ एक अखबार क्रांति का केंद्र था। आज जरूरत है कि हम फिर से उस भावना को जिंदा करें—जहाँ खबरें समाज को जागरूक करती थीं, तोड़ती नहीं, जोड़ती थीं।
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