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अंतरिक्ष में जीवन की चुनौती: लंबी अंतरिक्ष यात्राओं में अंतरिक्ष यात्रियों को घेरते ये 7 बड़े ख़तरे

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जैसे-जैसे भारत और दुनिया अंतरिक्ष की असीम संभावनाओं की ओर तेज़ी से बढ़ रही है, वैसे-वैसे भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्री भी इस दौड़ में अहम भूमिका निभा रहे हैं। हाल ही में चर्चा में आए हैं शुभांशु शुक्ला, ये उन चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक हैं जो अंतरिक्ष में भारत की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान में अंतरिक्ष में जाएँगे। उनकी ट्रेनिंग ज़ोरों पर है और वह मानसिक व शारीरिक रूप से खुद को इस चुनौतीपूर्ण मिशन के लिए तैयार कर रहे हैं। उनके साथ-साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्रियों की भी तैयारियां जोरों पर हैं।

इससे पहले भारतीय मूल की जानी-मानी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स भी दो बार अंतरिक्ष की लंबी यात्राओं पर जा चुकी हैं। उन्होंने अंतरिक्ष में कुल 286 दिन बिताए, जिसमें उन्होंने कई बार शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का अनुभव किया। उनके मुताबिक, अंतरिक्ष में सबसे बड़ा बदलाव शरीर में खून और तरल पदार्थों के बहाव में आता है, जिससे सिर भारी महसूस होने लगता है। इसके अलावा उन्होंने नींद न आना, मांसपेशियों में कमजोरी, आंखों की रोशनी में हल्के बदलाव, और लंबे समय तक वजन रहित वातावरण में रहने के कारण हड्डियों के कमजोर होने जैसी समस्याओं का सामना किया। उन्होंने यह भी बताया कि धरती पर लौटने के बाद शरीर को फिर से सामान्य गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल ढलने में काफी समय लगता है।

लेकिन जब कोई अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी से लाखों किलोमीटर दूर जाता है, तो यह सिर्फ एक मिशन नहीं होता — यह एक बेहद कठिन यात्रा होती है, जिसमें इंसान को हर पल अपने अस्तित्व की परीक्षा देनी पड़ती है। ऐसे में यह सवाल हर किसी के मन में उठता है — कि आखिर लंबी अंतरिक्ष यात्राएं इतनी चुनौतीपूर्ण क्यों होती हैं? तो आइए जानते हैं उन 7 बड़े ख़तरों के बारे में, जिनका सामना अंतरिक्ष में जीवन बिताते वक्त हर अंतरिक्ष यात्री को करना पड़ता है।

माइक्रोग्रैविटी: जब गुरुत्वाकर्षण ही नहीं रहता

सबसे पहला और प्रमुख खतरा सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण यानी माइक्रोग्रैविटी का है। पृथ्वी से बाहर अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति के कारण इंसानी शरीर कई बदलावों से गुजरता है। हड्डियों का घनत्व धीरे-धीरे घटने लगता है, मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं और दिल की क्षमता भी कमजोर पड़ने लगती है। महीनों तक ऐसे वातावरण में रहने से इंसान की शारीरिक ताकत में बड़ी गिरावट आ सकती है।

विकिरण का खतरा: अदृश्य मौत का डर

दूसरा बड़ा खतरा विकिरण यानी रेडिएशन का है। पृथ्वी की चुंबकीय परत और वातावरण हमें सूर्य और ब्रह्मांडीय विकिरणों से बचाते हैं, लेकिन अंतरिक्ष में यह सुरक्षा कवच नहीं होता। ऐसे में अंतरिक्ष यात्री उच्च ऊर्जा विकिरण के संपर्क में आते हैं, जिससे डीएनए को नुकसान, कैंसर जैसी बीमारियां और मस्तिष्क पर प्रभाव की आशंका रहती है। खासकर मंगल जैसे लम्बे मिशनों में विकिरण को सबसे बड़ा जोखिम माना जाता है।

मानसिक तनाव: पृथ्वी से दूर अकेलापन

मानसिक स्वास्थ्य पर भी अंतरिक्ष यात्राएं गहरा असर डालती हैं। पृथ्वी से हजारों किलोमीटर दूर, महीनों तक सीमित जगह में रहना, सामाजिक अलगाव और पृथ्वी से संपर्क की कमी से तनाव, अवसाद और मनोवैज्ञानिक संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं। NASA ऐसे व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक जोखिमों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण और अध्ययन कर रहा है।

दृष्टि संबंधी खतरे: आंखों पर असर डालती सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण

एक और कम चर्चित लेकिन गंभीर समस्या दृष्टि से जुड़ी है। माइक्रोग्रैविटी में शरीर के तरल पदार्थ सिर की ओर बढ़ने लगते हैं, जिससे आंखों पर दबाव पड़ता है। कई अंतरिक्ष यात्री इससे ‘स्पेसफ्लाइट असोसिएटेड न्यूरो-ऑक्युलर सिंड्रोम’ (SANS) नामक समस्या का शिकार हो चुके हैं, जिससे दृष्टि धुंधली हो सकती है और स्थायी क्षति की आशंका बनी रहती है।

कमजोर होती प्रतिरक्षा प्रणाली: रोगों को न्योता

लंबी अंतरिक्ष यात्राएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि अंतरिक्ष में रहने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे इंफेक्शन और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि निष्क्रिय वायरस, जैसे हर्पीस वायरस, दोबारा सक्रिय हो सकते हैं।

धरती पर वापसी भी आसान नहीं

जब कोई अंतरिक्ष यात्री लंबे मिशन के बाद धरती पर लौटता है तो उसे पुनः पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार ढलने में परेशानी होती है। शरीर कमजोर महसूस करता है, संतुलन बिगड़ता है और चक्कर आना जैसी समस्याएं होती हैं। इसे रिकवरी पीरियड कहा जाता है, जिसमें शरीर को फिर से सामान्य हालातों के अनुरूप ढालने में समय लगता है।

तकनीकी विफलताएं: जीवन रेखा में खलल

अंतरिक्ष मिशनों में तकनीकी विश्वसनीयता अत्यंत आवश्यक है। किसी भी उपकरण की विफलता — चाहे वह ऑक्सीजन सप्लाई हो, तापमान नियंत्रण प्रणाली हो या संचार प्रणाली — अंतरिक्ष यात्रियों की जान को जोखिम में डाल सकती है। इसलिए हर मिशन से पहले इन सभी प्रणालियों की जांच और बैकअप तैयारियां की जाती हैं।

लंबी अंतरिक्ष यात्राएं इंसान की सीमाओं की परीक्षा लेती हैं — शारीरिक, मानसिक और तकनीकी तीनों स्तरों पर। लेकिन वैज्ञानिक लगातार इन खतरों को कम करने के लिए अनुसंधान कर रहे हैं ताकि भविष्य में मंगल और उससे आगे की यात्राएं सुरक्षित और सफल हो सकें। जब हम अंतरिक्ष में कदम रखते हैं, तो यह केवल तकनीकी कौशल नहीं बल्कि इंसानी जज़्बे और सहनशक्ति की भी परीक्षा होती है।

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