अमेरिका ने चाबहार पोर्ट पर भारत को दी 6 महीने की राहत, कनेक्टिविटी मिशन को मिलेगी रफ्तार

अमेरिका ने ईरान के चाबहार पोर्ट पर भारत के संचालन को लेकर लगाए गए प्रतिबंधों में छह महीने की छूट (waiver) दे दी है। यह निर्णय भारत के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, क्योंकि इससे उसके क्षेत्रीय व्यापार और संपर्क (connectivity) से जुड़े महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को गति मिलेगी। विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता ने गुरुवार को पुष्टि की कि अमेरिका ने भारत को चाबहार पोर्ट पर लगाए गए प्रतिबंधों से छह महीने की छूट प्रदान की है। प्रवक्ता ने कहा, “अमेरिका ने चाबहार पोर्ट पर भारत को छह महीने का छूट अवधि दी है। हम अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक समझौते को लेकर बातचीत जारी रखे हुए हैं।”
VIDEO | Delhi: “US has granted India six months exemption from American sanctions on Chabahar port; we remain engaged with US to conclude a trade deal”, says MEA spokesperson Randhir Jaiswal (@MEAIndia) during a press briefing.#Chabahar #US #Sanctions
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— Press Trust of India (@PTI_News) October 30, 2025
चाबहार पोर्ट भारत के लिए एक रणनीतिक व्यापार मार्ग है, जो उसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधा पहुंच प्रदान करता है — वह भी पाकिस्तान को बायपास करते हुए। इस बंदरगाह के जरिये भारत मानवीय सहायता और व्यापारिक सामान इन देशों तक भेज सकता है।
भारत ने मई 2024 में ईरान के Port and Maritime Organisation के साथ 10 साल का समझौता किया था, जिसके तहत भारत को इस पोर्ट के संचालन का अधिकार मिला है। अब अमेरिका की यह छूट उस समझौते को सुचारू रूप से जारी रखने में मदद करेगी। सूत्रों के मुताबिक, यह राहत भारत की सफल कूटनीतिक बातचीत का परिणाम है। नई दिल्ली ने वाशिंगटन को यह समझाया कि चाबहार पोर्ट का संचालन क्षेत्रीय स्थिरता और कनेक्टिविटी के लिए जरूरी है।
चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का एक अहम हिस्सा है। उजबेकिस्तान जैसे कई भू-आबद्ध देश भी इस पोर्ट के जरिये अपने व्यापारिक रास्तों को चीन के बेल्ट एंड रोड नेटवर्क के विकल्प के रूप में इस्तेमाल करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। यहां तक कि रूस भी मध्य एशियाई देशों के जरिए इस पोर्ट का उपयोग कर भारत और एशिया के अन्य हिस्सों से व्यापारिक संबंध मजबूत करने की संभावनाएं तलाश रहा है।
इस तरह, चाबहार पोर्ट पर अमेरिकी छूट न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे एशियाई क्षेत्र के लिए आर्थिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।





