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क्यों मनाया जाता है ईद मिलाद-उन-नबी? जाने इसके पीछे का कारण इतिहास के पन्नो में

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28 सितंबर को मुस्लिम समुदाय के लोग ईद मिलाद-उन-नबी मनाएंगे। हर साल ईद-ए-मिलाद को इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद साहब के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह माना जाता है कि पैगंबर का जन्म 570 ईस्वी में इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन मक्का में हज़रत अब्दुल्ला और बीबी अमीना के घर हुआ था। हालाँकि, कुछ शिया मुसलमानों का मानना है कि उनका जन्म रबी अल-अव्वल की 17 तारीख को हुआ था। गौरतलब है कि इस दिन को पैगंबर की पुण्य तिथि के रूप में भी मनाया जाता है।

इस साल ईद-ए-मिलाद सऊदी अरब में 27 सितंबर को और भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों में एक दिन बाद, यानी की 28 सितंबर को मनाया जाएगा।

ईद मिलाद-उन-नबी के पीछे का इतिहास

इस्लामी साहित्य के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद साहब का जन्मदिन प्रारंभिक खलीफाओं रशीदुन के समय से चला आ रहा है और इसकी शुरुआत फातिमियों द्वारा की गई थी। मुसलमानों का एक समूह स्वीकार करता है कि पैगंबर का जन्म 570 ईस्वी में रबी अल-अव्वल के बारहवें दिन हुआ था। जहाँ एक तरफ “मावलिद” अरबी में “जन्म” को दर्शाता है, वही कुछ लोग इसे पैगंबर की मृत्यु की सालगिरह के रूप में शोक मनाने का दिन भी मानते हैं। ईद-ए-मिलाद का आधिकारिक उत्सव मिस्र में शुरू हुआ और 11वीं शताब्दी में इसे लोकप्रियता मिली थी।

सबसे पहले, केवल मिस्र में शिया जनजाति के लोग इसे मानते थे, हालांकि करीब 12वीं शताब्दी में यह धीरे-धीरे तुर्की, सीरिया, मोरक्को और स्पेन तक फैल गया। बाद में सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय भी ईद मिलाद-उन-नबी मनाने लगे।

कुछ लोग ईद उल मिलाद मनाने से परहेज़ करते है

ईद-ए-मिलाद सूफी और बरेलवी संप्रदायों के लिए काफी महत्व रखता है, लेकिन कुछ मुस्लिम समुदाय इससे परहेज़ रखते है। सलाफ़ी और वहाबी विचारधारा के लोग इसे धर्म में एक बिद्दाह (बिद्दत) मानते हैं, क्योंकि पैगंबर मुहम्मद या उनके उत्तराधिकारियों द्वारा किसी भी तरह से उनके जन्मदिन को मनाने का कोई प्रामाणिक प्रमाण नहीं है। उनका तर्क है कि इस्लामी संस्कृति सिर्फ ईद-उल-फितर और ईद अल-अधा के त्योहार की अनुमति देती है।

कैसे मनाया जाता है ये तयोहार

ईद-ए-मिलाद के दौरान कुरान की आयतों का पाठ, प्रार्थना, भाषण और एक सार्वजनिक दावत शामिल है। इस दिन लोग मस्जिदों या दरगाहों पर इकट्ठा होते हैं, अपने दिन की शुरुआत सुबह की प्रार्थना के साथ करते हैं, शहरों में परेड आयोजित करते हैं और पैगंबर के जीवन और पाठों की कहानियों के बारे में बताया जाता है। इसके अलावा सामुदायिक दावतें, गरीबों को उपहार आदि भी इस त्योहार में किया जाता है।