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40 दिनों तक औरंगज़ेब की यातनाएँ सहने के बाद भी नहीं कबूला इस्लाम, जानिये संभाजी महाराज के जीवन के अनसुने तथ्य 

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संभाजी महाराज साहस और वीरता के प्रतीक माने जाते हैं, हर वर्ष 11 मार्च के दिन उनकी जयंती मनायी जाती है. आज उनकी जयंती के दिन हम उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलू आपको साझा कर रहे है. संभाजी महाराज ने भगवा के दम पर मुगल शासक औरंगजेब के दिल में डर पैदा कर दिया था। अगर बात करें संभाजी महाराज की तो उन्हें प्यार से लोग‘छावा’ कहते थे, जिसका अर्थ है “शेर का बच्चा”। वह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने 40 दिनों तक औरंगज़ेब की लगातार यातनाएँ सही पर इस्लाम को क़बूल नहीं किया.

संभाजी महाराज का प्रारंभिक जीवन:

संभाजी का जन्म 14 मई 1657 को महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित पुरंदर किले में हुआ था. साईबाई छत्रपति शिवाजी महाराज की पहली पत्नी और मुख्य पत्नी थीं. जब संभाजी राजे केवल 2 वर्ष के थे, तब संभाजी की माता सईबाई की मृत्यु हो गई. छत्रपति संभाजी की देखभाल उनकी दादी जीजाबाई ने की थी.वे बचपन से ही अपने पिता से शस्त्र अस्त्र की शिक्षा लेते रहते थे.

शिवाजी महाराज के निधन के बाद, 1681 में संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। उन्होंनें छोटी-सी शासन अवधि (1681-1689) में 100 से अधिक युद्ध लड़े और एक भी हारा नहीं। उन्होंने औरंगजेब की लगभग 8 लाख सैनिकों वाली मजबूत सेना का बहादुरी से सामना किया और कई मुगल सरदारों को हराया। उनकी वजह से ही औरंगजेब मराठा क्षेत्र पर मजबूत पकड़ नहीं बना पाया।

कैसे हुईं संभाजी महाराज की मृत्यु : 

संभाजी महाराज की मृत्यु किसी क़रीबी के विश्वासघात के कारण हुई। 1689 में, उनके ही एक रिश्तेदार की धोखेबजी के कारण मुगल सेना के हत्थे चढ़ गए। औरंगजेब ने उन्हें बंदी बनाया और इस्लाम कबूल करने की शर्त पर जिंदा रखने का प्रस्ताव रखा। लेकिन संभाजी ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. इस प्रकार उन्हें लगातार चालिस दिनों तक यातनाएँ दी गई. लगातार यातनाओं के बाद 11 मार्च 1689 को संभाजी महाराज की तालापुर तट पर मृत्यु हो गयी.

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