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महाकुंभ में 50 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने किया स्नान, महामारी का कोई संकेत नहीं—परमाणु तकनीक का कमाल!

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प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 में अब तक 50 करोड़ से अधिक श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद किसी भी तरह की महामारी या संक्रामक रोग फैलने का कोई संकेत नहीं मिला है। यह संख्या अमेरिका और रूस की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस सफलता का श्रेय परमाणु तकनीक पर आधारित सीवेज उपचार प्रणाली को दिया है।

रविवार को संगम में स्नान करने के बाद विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति के बावजूद महामारी का कोई खतरा न होना एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि इस बार महाकुंभ में मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और कलपक्कम स्थित इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित अत्याधुनिक hgSBR (हाइब्रिड ग्रैन्युलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर) तकनीक पर आधारित सीवेज उपचार संयंत्रों का उपयोग किया गया है।

ये संयंत्र गंगा नदी में बहने वाले गंदे पानी को सूक्ष्मजीवों की सहायता से स्वच्छ करने में सक्षम हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग के वैज्ञानिक डॉ. वेंकट ननचारैया द्वारा विकसित इस तकनीक की खासियत यह है कि यह कम जमीन, न्यूनतम बुनियादी ढांचे और कम लागत में प्रभावी परिणाम देती है। महाकुंभ में स्थापित ये संयंत्र प्रतिदिन करीब 1.5 लाख लीटर सीवेज का उपचार कर रहे हैं, जिससे संगम क्षेत्र में जलजनित बीमारियों का खतरा टल गया है।

महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन में स्वच्छता और बीमारियों की रोकथाम हमेशा एक बड़ी चुनौती रही है। खुले में शौच और गंदे पानी की वजह से पहले हैजा और दस्त जैसी बीमारियां फैलती थीं, लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने 1.5 लाख शौचालयों का निर्माण करवाया है। इसके अलावा, मेला स्थल पर 11 स्थायी और 3 अस्थायी सीवेज उपचार संयंत्र लगाए गए हैं। श्रद्धालुओं को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 200 से अधिक मशीनें तैनात की गई हैं।

महाकुंभ 2025 में वैज्ञानिक और प्रशासनिक प्रयासों के चलते स्वच्छता व्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया है। परमाणु तकनीक आधारित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और व्यापक स्वच्छता योजनाओं की बदौलत इस ऐतिहासिक आयोजन में अब तक कोई महामारी नहीं फैली है। यह उपलब्धि न केवल भारत के तकनीकी कौशल को दर्शाती है, बल्कि स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक मिसाल भी पेश करती है।

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