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क्या है संविधान की छठी अनुसूची, जिसके लिए लद्दाख वासी कर रहे हैं आमरण अनशन

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क्या है संविधान की छठी अनुसूची, जिसके लिए लद्दाख वासी कर रहे हैं आमरण अनशन

 

सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पिछले 6 मार्च से लद्दाख में अनशन कर रहे थे। सोनम वांगचुक ने लद्दाख में करीब 21 दिनों तक आमरण अनशन किया और बीती 26 मार्च को अपनी भूख हड़ताल तोड़ी। अपनी भूख हड़ताल को खत्म करने के बाद सोनम वांगचुक ने कहा- ये आंदोलन का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। उन्होंने कहा कि कल से महिलाएं भूख हड़ताल करेंगी। अपनी मांगों को लेकर हमें जब तक आंदोलन करना पड़े, हम करेंगे।

सोनम वांगचुक ने इस अनशन को “जलवायु उपवास” (Climate Fast) नाम दिया। वांगचुक ने 26 मार्च को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी, लेकिन अब लद्दाख की महिलाएं हड़ताल पर बैठ गई हैं।

दरअसल, सोनम वांगचुक के साथ-साथ तमाम लोग भी अनशन पर बैठे हुए हैं। सोनम वांगचुक और उनके साथ अनशन पर बैठे लोग पूर्वोत्तर राज्यों की तरह लद्दाख को भी संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने व पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए भूख हड़ताल कर रहे थे। इसके साथ ही कई अन्य मांगों को लेकर लद्दाख के लोग अनशन कर रहे हैं। आईये जानते हैं कि क्या है संविधान की छठी अनुसूची और लद्दाख वासियों की प्रमुख मांगे-

लद्दाख वासियों की यह हैं प्रमुख मांगे-

  • लद्दाख को पूर्ण राज्य का तथा आदिवासी दर्जा देने की मांग
  • स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण देने की मांग
  • लेह और कारगिल के लिए एक-एक संसदीय सीट होने की मांग
  • संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की मांग

 

क्या है संविधान की छठी अनुसूची-

केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाकर पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना। लेह और कारगिल को मिलाकर लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बना था।

इसके बाद लेह और कारगिल के लोग खुद को राजनीतिक तौर पर बेदखल महसूस करने लगे। उन्होंने केंद्र के खिलाफ आवाज उठाई। बीते दो साल में लोगों ने कई बार विरोध-प्रदर्शन कर पूर्ण राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा मांगते रहे हैं, जिससे उनकी जमीन, नौकरियां और अलग पहचान बनी रही, जो आर्टिकल 370 के तहत उन्हें मिलता था।

छठी अनुसूची में संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत विशेष प्रावधान हैं। छठी अनुसूची का विषय असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन है।

बता दें कि बारदलोई कमिटी की सिफारिशों पर संविधान में इस अनुसूची को जगह दी गई। छठी अनुसूची के तहत, जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिले बनाने का प्रावधान है। राज्‍य के भीतर इन जिलों को विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्‍वायत्‍ता मिलती है। राज्यपाल को यह अधिकार है कि वे इन जिलों की सीमा घटा-बढ़ा, परिवर्तन कर सकते हैं।

अगर किसी जिले में अलग-अलग जनजातियां हैं जो कई ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट बनाए जा सकते हैं। हर स्वायत्त जिले में एक ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (ADCs) बनाने का प्रावधान है। अधिकतम पांच साल के कार्यकाल वाली ADC में 30 सदस्य हो सकते हैं। इस काउंसिल को भूमि, जंगल, जल, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, स्वच्छता, ग्राम और नगर स्तर की पुलिसिंग, विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज और खनन आदि से जुड़े कानून, नियम बनाने का हक है।