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सावन सोमवार की आज से हुई शुरुवात, जानें क्यों है शिव का प्रिय महीना

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वैसे तो प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की उपासना के लिये उपयुक्त माना जाता है लेकिन सावन के सोमवार की अपनी अलग महत्ता है। सावन सोमवार आज (6 जुलाई ) से शुरू हो गए है। बता दें की ये महीना देवादिदेव महादेव की उपासना का माह माना जाता है। वही साथ ही ये शिव का प्रिय महीना भी होता है। इसलिए इस महीने में भक्त व्रत रखते हैं और साथ ही सभी शिवालयों में महादेव की पूजा अचर्ना बड़ी लगन और बड़ी धूम धाम के साथ होती है। आज भी सावन सोमवार के चलते उज्जैन में महाकाल का अभिषेक और पूजा अर्चना हुई, साथ ही सुबह से अलग अलग मंदिरों में भक्त शिव के दर्शन करने पहुंचे।

सावन सोमवार की सभी तारीखें:
सावन का पहला सोमवार 06 जुलाई 2020
सावन का दूसरा सोमवार 13 जुलाई 2020
सावन का तीसरा सोमवार 20 जुलाई 2020
सावन का चौथा सोमवार 27 जुलाई 2020
सावन का पांचवा सोमवार 03 अगस्त 2020

क्यों मनाया जाता है सावन सोमवार?
स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार देवी सती ने हर जन्म में भगवान शिव को पति रूप में पाने का प्रण लिया था पिता के खिलाफ होकर उन्होंने शिव से विवाह किया लेकिन अपने पिता द्वारा शिव को अपमानित करने पर उसने शरीर त्याग दिया। जिसके बाद माता सती ने हिमालय व नैना पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिव जी की पूजा की और सावन के महीने में कठोर तप किया। इस पूजा से प्रसन्‍न होकर शिवजी ने उनसे विवाह कर लिया। तभी से ये महीना शिव जी के लिए प्रिय हो गया।

ये कथा खुद शिवजी ने सनत कुमारों को सुनाई थी, जब उन्‍होंने सावन का महीना प्रिय होने के बारे में पूछा था।

 

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आपको बता दे की इन्हीं सावन सोमवार के साथ कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी हो जाती थी. इस सावन में कांवड़िए अलग-अलग शहरों से हरिद्वार जाते हैं और अपने कांवड़ में गंगा जल भरकर पैदल यात्रा शुरू करते हैं और शिविलिंग पर जल चढ़ाते हैं. कुछ भक्त ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन के लिए भी जाते हैं. सोमवार और शिवरात्रि पर इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते इस बार कावड़ यात्रा पर रोक लगा दी गयी है।

कांवड़ियों को लेकर क्या है मान्यता?

ये मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया था. इसके बाद से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाने लगा. शिव के विष का सेवन करने से दुनिया तो बच गई लेकिन उनका शरीर जलने लगा. इस वजह से देवी-देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया. इसी के बाद कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.

वैसे तो अलग- अलग कथाओं के हिसाब से अलग अलग मान्यताएं है मगर भक्त तो केवल भक्ति में लीन हो कर शिव की आराधना करना जानते है।

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