कांग्रेस नेता और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने मंगलवार को केंद्र पर “सूचना के ऐतिहासिक अधिकार को छीनने” की कोशिश करने का आरोप लगाया. सोनिया गांधी का यह बयान सोमवार को लोकसभा द्वारा पारित किए गए पारदर्शिता कानून में संशोधन के परिदृश्य में आया है.
सोनिया ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा है कि मोदी सरकार आरटीआई कानून में संशोधन कर इसे खत्म करने की दिशा में बढ़ रही है.
यूपीए चेयरपर्सन ने अपने बयान में कहा, ‘यह अत्यंत चिंता की बात है कि केंद्र सरकार ऐतिहासिक सूचना का अधिकार (आरटीआई) को पूरी तरह से खत्म करने पर तुली हुई है. इस कानून को काफी विचार-विमर्श करने के बाद तैयार किया गया और संसद ने इसे एकमत होकर पारित किया. अब यह कानून खत्म होने के कगार पर है.’
Sonia Gandhi, Congress: It's clear that the present Central Govt sees the RTI Act as a nuisance & wants to destroy the status & independence of the Central Information Commission which was put on par with the Central Election Commission and Central Vigilance Commission. pic.twitter.com/gsy5lqw7on
— ANI (@ANI) July 23, 2019
आरटीआई एक्ट में बदलाव करने की सरकार की कोशिशों की आलोचना करते हुए यूपीए चेयरपर्सन ने कहा, ‘एक दशक से ज्यादा समय तक देश में 60 लाख से ज्यादा महिला एवं पुरुषों ने आरटीआई का इस्तेमाल किया है. आरटीआई से प्रशासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही की एक नई संस्कृति विकसित हुई है. आरटीआई से हमारे लोकतंत्र की नीव में मजबूती आई है. सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं अन्य लोगों द्वारा आरटीआई के इस्तेमाल से समाज का कमजोर तबका बड़े पैमाने पर लाभान्वित हुआ है.’
आधिकारिक बयान जारी करते हुए सोनिया गांधी ने आगे लिखा,’जाहिर है कि मौजूदा सरकार को आरटीआई कानून को एक बाधा के रूप में देखती है. केंद्रीय सूचना आयोग जिसे मुख्य चुनाव आयोग एवं केंद्रीय सतर्कता आयोग के समान दर्जा दिया गया है, सरकार उसकी इस आजादी एवं दर्जे को खत्म करना चाहती है. सरकार सदन में अपने संख्या बल के आधार पर इस लक्ष्य को पा सकती है लेकिन यह देश के प्रत्येक नागरिक को कमजोर बनाएगा.’
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बता दें कि मोदी सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा में सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक (2019) पेश किया था जिसे निचले सदन ने सोमवार को पारित कर दिया था. कांग्रेस के अलावा टीएमसी, बहुजन समाज पार्टी और डीएमके ने भी इस विधेयक का विरोध किया था.
विपक्षी दलों का कहना है कि संशोधन के जरिए सरकार इस कानून को कमजोर करना चाहती है. जबकि सरकार का तर्क है कि 2005 में इस कानून को जल्दबाजी में पारित किया गया और इसमें कुछ खामियां रह गईं जिन्हें ठीक करने की जरूरत है.