अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच गुरुवार को फोन पर बातचीत हुई। यह वार्ता ऐसे समय पर हुई है जब दोनों देशों के बीच व्यापार शुल्क (टैरिफ) को लेकर लंबे समय से गतिरोध बना हुआ है और इसका प्रभाव वैश्विक व्यापार प्रणाली पर भी पड़ रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने इस फोन कॉल की पुष्टि करते हुए बताया कि यह बातचीत अमेरिकी पक्ष, यानी राष्ट्रपति ट्रंप की पहल पर हुई। हालांकि व्हाइट हाउस की ओर से इस वार्ता को लेकर कोई तत्काल प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
गौरतलब है कि अमेरिका और चीन के बीच 12 मई को एक प्रारंभिक व्यापार समझौता हुआ था, जिसमें दोनों देशों ने व्यापार शुल्कों को कम करने पर सहमति जताई थी। इस समझौते का उद्देश्य व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाना था। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद यह प्रक्रिया फिर अटक गई। अमेरिका और चीन के बीच गहराती आर्थिक प्रतिस्पर्धा इसके पीछे मुख्य कारण मानी जा रही है।
इस बीच ट्रंप ने सोशल मीडिया पर शी जिनपिंग को लेकर टिप्पणी करते हुए लिखा, “मुझे शी पसंद हैं और मैं हमेशा उन्हें पसंद करूंगा, लेकिन वह बहुत सख्त हैं और उनके साथ समझौता करना बेहद कठिन है।”
अमेरिका ने चीन पर दुर्लभ खनिजों के निर्यात में बाधा पहुंचाने का आरोप लगाया है। वहीं चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिका पर उच्च तकनीकी चिप्स की बिक्री पर रोक लगाने और चीनी छात्रों के लिए वीजा नियमों को कठोर करने का आरोप लगाया है। चीन का कहना है कि इससे उनके विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे छात्रों को नुकसान हो रहा है।
यह पहली बार नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ तीखे आरोप लगाए हों। हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर आरोप लगाया कि चीन ने उनके साथ हुए व्यापार समझौते का पूरी तरह उल्लंघन किया है। ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने चीन को एक डील के जरिए आर्थिक संकट से उबारा था, लेकिन संकट टलते ही चीन ने समझौते को नजरअंदाज कर दिया।
व्यापार वार्ता को दोबारा पटरी पर लाने के लिए अमेरिका ने चीन से आने वाले उत्पादों पर लगे 145% आयात शुल्क को घटाकर 30% कर दिया है। यह छूट आगामी 90 दिनों तक लागू रहेगी। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर आयात शुल्क को 125% से घटाकर 10% कर दिया है। हालांकि इन नीतिगत बदलावों से अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे वैश्विक व्यापार की स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है।
अमेरिका और चीन की रणनीतियां इस व्यापारिक टकराव के केंद्र में हैं। ट्रंप की सोच है कि अमेरिका को चीन पर विनिर्माण के लिए निर्भर नहीं रहना चाहिए और घरेलू औद्योगीकरण को बढ़ावा देना चाहिए। वहीं चीन भविष्य की तकनीकों जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में निवेश बढ़ाकर वैश्विक आर्थिक दौड़ में आगे निकलने की रणनीति पर काम कर रहा है।
साल 2024 में अमेरिका को चीन के साथ 295 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ। यानी अमेरिका ने चीन से कहीं अधिक आयात किया लेकिन निर्यात नहीं बढ़ा पाया। दूसरी ओर, चीन अपनी धीमी होती अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है। कोविड महामारी के लंबे लॉकडाउन और रियल एस्टेट सेक्टर के संकट ने उसकी आंतरिक मांग को कमजोर किया है।
ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच इससे पहले जनवरी में भी बातचीत हुई थी, जो अमेरिकी शपथग्रहण दिवस से कुछ दिन पहले हुई थी। उस बातचीत में व्यापार के अलावा ‘फेंटानिल’ नामक घातक सिंथेटिक ड्रग की अमेरिका में तस्करी रोकने की मांग भी प्रमुख रूप से उठाई गई थी। ट्रंप ने चीन से इस पर सख्त कार्रवाई की अपील की थी।
जहां शुरुआत में ट्रंप चीन के साथ एक ‘बड़ा व्यापार समझौता’ करने को लेकर आशावादी थे, अब उनका रवैया काफी सख्त हो गया है। हाल की पोस्ट में उन्होंने कहा, “बुरी खबर यह है कि चीन ने हमारे साथ हुए समझौते का पूरी तरह उल्लंघन किया है। अब अच्छा इंसान बनने का कोई फायदा नहीं।”
अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध एक बार फिर तनाव के दौर में पहुंच गए हैं। जहां एक तरफ दोनों देशों ने टैरिफ में राहत देने की कोशिश की है, वहीं आपसी अविश्वास और विरोधाभासी नीतियां बातचीत को आगे बढ़ने से रोक रही हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों पक्ष कोई स्थायी समाधान निकाल पाएंगे या यह व्यापार युद्ध और भी गहराएगा।
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