लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल शनिवार को प्रयागराज पहुंचे, जहां यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने उनका स्वागत किया। दोनों नेताओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई और बाद में अरैल स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम पहुंचकर स्वामी चिदानंद सरस्वती से आशीर्वाद लिया। इसके बाद, दोनों ने चार दिवसीय कीवा महाकुंभ में हिस्सा लिया, जिसमें दुनिया भर के आदिवासी धर्मगुरु, आध्यात्मिक नेता और सांस्कृतिक प्रतिनिधि शामिल हुए।
कीवा महाकुंभ का आयोजन आदिवासी परंपराओं, आध्यात्मिक संवादों, प्रार्थनाओं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए किया गया। इस महाकुंभ में 700 से अधिक आदिवासी नेताओं और संस्कृतियों को एकजुट किया गया, ताकि मानवता और प्रकृति के बीच संतुलन को पुनः स्थापित किया जा सके। आयोजकों ने कहा कि यह आयोजन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को सशक्त करता है और पृथ्वी के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि कीवा महाकुंभ परंपराओं के सम्मान और एकता का उत्सव है। यह आयोजन हमें धरती माता के प्रति सम्मान, प्रेम और कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर देता है। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रयासों से हम अपनी आदिवासी संस्कृतियों की अमूल्य धरोहर को संरक्षित कर सकते हैं और धरती को फिर से संजीवनी देने वाला बना सकते हैं।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि भारत की संस्कृति विविधता में एकता की मिसाल है। यहां विभिन्न धर्मों, भाषाओं और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है, जहां हर संस्कृति को समान सम्मान दिया जाता है। उन्होंने कहा, “भारतीय समाज हमेशा से समरसता और सहअस्तित्व की भावना को अपनाता आया है। भगवद गीता, वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ सहिष्णुता और सद्भाव का संदेश देते हैं।”
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि स्वामी चिदानंद सरस्वती ने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा, “संस्कृतियों का आदान-प्रदान पूरे विश्व को एक सूत्र में जोड़ने का कार्य करता है। भारत के पास सभी से जुड़ने और सभी को जोड़ने का अनूठा तरीका है।”
इस आयोजन का उद्देश्य आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करना, प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा, आदिवासियों की पहचान और अधिकारों का सम्मान, और सतत अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण की दिशा में कार्य करना है। इस महाकुंभ ने प्रयागराज के महाकुंभ पर्व की पवित्रता और वैश्विक एकता को एक नए आयाम तक पहुंचाया।
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