भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के एक ऐतिहासिक निर्णय में भारतीय सशस्त्र बलों में सेवा कर रहीं शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) की महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन (PC) देने का अधिकार दे दिया है। यह फैसला उन 17 महिला अधिकारियों की याचिका पर आया, जिन्होंने 14 साल की सेवा के बाद भी परमानेंट कमीशन नहीं मिलने पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस फैसले से अब महिला अधिकारी भी पुरुषों की तरह पूरी सेवा अवधि तक भारतीय सेना में कार्यरत रह सकेंगी।
1888 में इंडियन मिलिट्री नर्सिंग सर्विस के गठन के साथ ही महिलाओं की भागीदारी की शुरुआत हो गई थी। प्रथम विश्व युद्ध में इन महिला नर्सों ने अत्यंत साहस और समर्पण के साथ अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद Women’s Auxiliary Corps की स्थापना हुई, जिसमें महिलाओं को संचार, लेखा और प्रशासन जैसे गैर-लड़ाकू क्षेत्रों में कार्य करने का अवसर मिला। आज़ाद हिंद फौज में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा बनाई गई ‘झांसी की रानी रेजीमेंट’ ने तो सीधे युद्धभूमि में भी भाग लिया था, जो उस समय एक क्रांतिकारी पहल थी।
1950 में बने आर्मी एक्ट के अनुसार, महिलाओं को रेगुलर कमीशन के लिए योग्य नहीं माना गया, हालांकि सरकार कुछ खास मामलों में छूट देती रही। 1958 में पहली बार आर्मी मेडिकल कोर में महिला अधिकारियों को रेगुलर कमीशन दिया गया। इसके बाद 1980 और 1990 के दशक में महिलाओं को शॉर्ट सर्विस कमीशन के ज़रिए सेना में आने का अवसर मिलने लगा। 2023 तक महिलाएं पैरा रेजिमेंट जैसे विशेष लड़ाकू बलों में तो शामिल नहीं हो सकतीं, लेकिन इंजीनियर्स, सिग्नल कॉर्प्स और मेडिकल जैसे कई गैर-लड़ाकू क्षेत्रों में उनका योगदान लगातार बढ़ता रहा है।
महिलाओं को परमानेंट कमीशन या लड़ाकू भूमिकाओं में शामिल करने को लेकर समाज में कई तरह की आपत्तियां और बहसें भी सामने आती रही हैं। कुछ लोगों का मानना रहा कि हमारी समाजिक सोच अब भी पितृसत्तात्मक है, और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए जवान महिला अधिकारियों से आदेश लेने में असहज हो सकते हैं। इसके अलावा, शारीरिक ताकत और आक्रामकता के आधार पर यह भी तर्क दिया जाता रहा है कि पुरुष बेहतर सैनिक होते हैं। हालांकि समय और उदाहरणों ने इन धारणाओं को कई बार गलत साबित किया है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के लिए सेना के कई विभागों के दरवाजे खोलता है। शॉर्ट सर्विस कमीशन यानी SSC के तहत महिला अधिकारी आमतौर पर 10 से 14 वर्षों तक सेवा कर सकती थीं। दसवें साल के बाद उनके पास तीन विकल्प होते थे — परमानेंट कमीशन के लिए आवेदन करना, सेवा से इस्तीफा देना या सेवा को चार और वर्षों के लिए बढ़ाना। अब कोर्ट के इस फैसले के बाद महिलाएं भी पुरुषों की तरह परमानेंट कमीशन प्राप्त कर सकती हैं और रिटायरमेंट तक भारतीय सेना में सेवा दे सकती हैं। हालांकि अभी भी पैरा, आर्टिलरी और अन्य विशेष लड़ाकू रेजिमेंट में उनकी भागीदारी सीमित है, लेकिन बाकी शाखाओं में उनकी उपस्थिति और प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है।
यह फैसला सिर्फ कानून की जीत नहीं, बल्कि भारतीय सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा और साहसिक कदम है। इससे न केवल महिलाओं को समान अवसर मिलेंगे, बल्कि सेना को भी एक अधिक विविध और समावेशी संगठन बनने में मदद मिलेगी।
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