कोरोना महामारी के बीच तमिलनाडु सरकार ने सांडों को काबू में करने का परंपरागत खेल जल्लीकट्टू के आयोजन को मंजूरी दे दी है, लेकिन ख़ास बात ये है कि इसके आयोजन की मंजूरी कुछ शर्तों के साथ दी गई है।
जारी हुई गाइडलाइन्स।
सरकार ने इस खेल के आयोजन के लिए कुछ गाइडलाइंस जारी की हैं।
- गाइडलाइन्स के मुताबिक, जल्लीकट्टू में 150 से ज्याद लोग शामिल नहीं हो पाएंगे।
- खेल में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को कोरोना वायरस निगेटिव होने का सर्टिफिकेट देना होगा।
- इसके अलावा आयोजन स्थल पर दर्शकों की कुल क्षमता का केवल 50 फीसदी लोगों को ही इकट्ठा होने की अनुमति होगी।
- इसके साथ ही यहां मौजूद सभी लोगों का मास्क पहनकर आना अनिवार्य होगा।
- सभी की प्रवेश के दौरान थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी। सभी का कोविड-19 टेस्ट किया जाएगा।
आसान भाषा में कहें तो जल्लीकट्टू एक तरह का खेल है, जो मट्टू पोंगल का हिस्सा है। मट्टू पोंगल यानी चार दिन तक चलने वाले त्योहार पोंगल का तीसरा दिन। तमिल भाषा में मट्टू का मतलब सांड होता है और पोंगल का तीसरा दिन पशुओं को समर्पित है। जो खेती की प्रक्रिया में सबसे प्रमुख माने जाते हैं।
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बता दे जलीकट्टू तमिलनाडु में एक बहुत पुरानी परंपरा है। इसीलिए जलीकट्टू त्योहार से पहले गांव के लोग अपने अपने बैलों की प्रैक्टिस करवाते हैं। जहां मिट्टी के ढेर पर बैल अपनी सींगो को रगड़ कर जलीकट्टू की तैयारी करता है। बैल को खूंटे से बांधकर उसे उकसाने की प्रैक्टिस करवाई जाती है, ताकि उसे गुस्सा आए और वो अपनी सींगो से वार करे। हालांकि जल्लीकट्टू को एक खतरनाक खेल माना जाता है।
400 साल पुरानी परंपरा है जलीकट्टू।
तमिलनाडु में जलीकट्टू 400 साल पुरानी परंपरा है जो योद्धाओं के बीच लोकप्रिय थी। प्राचीन काल में तो महिलाएं अपने पति को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थीं। बता दे जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने पति के रूप में चुनती थीं।