केंद्र सरकार ने सभी मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के लिए अनिवार्य की यूआईडी, हर 5 साल में कराना होगा रिन्यूवल, जानिए आम जनता को क्या होगा लाभ?
बड़ी आबादी वाले देश भारत में हर किसी को उचित चिकित्सा मिलना एक जटिल समस्या है। देश के हर कोने में बैठे नीम हकीम और झोलाछाप डॉक्टरों की वजह से आये दिन कई जिंदगियां असमय ही काल कलवित हो जाती हैं। पढ़े लिखे या यूँ कहें कि देश की आबादी के लिहाज से रजिस्टर्ड डॉक्टरों की भारी किल्लत के चलते भी कई बार आम लोग जरूरी चिकित्सा से वंचित रह जाते हैं . साल 2020 में फैली वैश्विक महामारी के समय देश में चिकित्सा और उससे जुड़े उपकरणों की भारी कमी महसूस की गई। हालांकि, सरकार ने वह हर जरूरी कदम उठाए जिससे लोगों की जान बचाई जा सके।
देश की चिकित्सा पद्धति में एलोपैथी से लेकर कई अन्य विधाओं को भी मान्यता प्राप्त है। इसी के चलते कई बार आम लोग भ्रमित होकर गलत इलाज करा बैठते हैं जिससे उन्हें लाभ की जगह नुकसान उठाना पड़ता है। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने देश के सभी रजिस्टर्ड डॉक्टरों या यूँ कहें कि मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के लिए यूनिक आईडी अनिवार्य कर दिया है। इस आईडी के चलते लोगों को डॉक्टरों के बारे में सारी जानकारियां आसानी से प्राप्त होंगी।
कहां होगा डॉक्टरों की यूनिक आईडी का रजिस्ट्रेशन?
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग या नेशनल मेडिकल कौंसिल द्वारा जारी किये गए नियम के तहत अब हर डॉक्टर को प्रैक्टिस करने के लिए एक यूनिक आईडी हासिल करना होगा। यह आईडी एनएमसी एथिक्स बोर्ड द्वारा जारी किया जायेगा। इसके बाद आईडी को एनएमसी में रजिस्टर कराना होगा, जिसके बाद वह देश में प्रैक्टिस कर पायेगा।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कराने के बाद डॉक्टर के बारे में कोई भी आसानी से इस वेबसाइट पर जाकर जानकारी प्राप्त कर पायेगा। इस वेबसाइट पर डॉक्टर की जन्मतिथि, रजिस्ट्रेशन नंबर, पिता का नाम, काम करने की जगह, स्पेशलाइजेशन और कॉलेज का नाम भी अंकित होगा। इससे आम व्यक्ति भी अपनी जरूरत के हिसाब से अपने रोगों के लिए उचित उपचार हेतु सही डॉक्टरों का चुनाव कर पायेगा। इसके साथ डॉक्टरों से जुड़ी जानकारी स्टेट मेडिकल कौंसिल के रजिस्टर में भी दर्ज की जाएगी। डॉक्टरों से जुड़ी जानकारी को हर प्रदेश की स्टेट मेडिकल कौंसिल की वेबसाइट पर भी कोई भी देख पाएगा।
गलत इलाज के चलते हर साल इतने लोगों को पहुंचता है नुकसान
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो बीमारी की सही पहचान ना कर पाने, नीम हकीम के चक्कर में पड़कर गलत घरेलू नुस्खों की वजह से बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गंवा देते हैं। एक डेटा के मुताबिक़ सही इलाज ना पाने और गलत नुस्खों के प्रयोग से हर साल करीब 14 करोड़ लोगों को नुक्सान पहुंचता है। संगठन के मुताबिक़ दुनिया भर में दवा के गलत प्रयोग के चलते हेल्थ केयर सिस्टम को अरबों रुपयों का नुक्सान होता है। साल 2019 में आजतक ने WHO के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
भारत में गलत सर्जरी से हर साल 5 लाख लोगों की मौत
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा चिकित्सा पर की गई एक स्टडी बताती है कि भारत में गलत सर्जरी से हर साल करीब 5 लाख लोगों की मौत हो जाती है। नेशनल प्रैक्टिशनर डेटा बैंक (एनपीडीबी) के मुताबिक, 67% गलत सर्जरी के केस 40 से ज्यादा उम्र के डॉक्टर के हाथों हुए, जबकि 40 से कम वालों में ऐसे मामले सिर्फ 25% हैं।
करीब 5 साल पहले हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा कराये गए एक अध्ययन में पता चला कि देश में हर साल चिकित्सकीय लापरवाहियों के चलते लगभग 50 लाख लोगों की जान चली जाती है। इसकी वजह डॉक्टरों और नर्सों में अस्पताल लाए जाने वाले मरीजों को संभालने के व्यवहारिक ज्ञान की कमी का होना बताया गया है।
आम जनता को होगा यह लाभ
इस तरह कहा जा सकता है कि गलत दवा, ख़राब घरेलू नुस्खों और सही चिकित्सकीय जानकारी ना होने के चलते हर साल लाखों लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। यूनिक आईडी के रजिस्टर होने के बाद लोग रोग के मुताबिक अपने डॉक्टर से संपर्क कर सही और उचित इलाज पा सकते हैं। इससे लोगों को झोला छाप डॉक्टरों से निजात तो मिलेगी ही बल्कि समय पर सही इलाज मिलने से उनकी जान जाने का जोखिम भी कम हो जाएगा। डॉक्टर्स से जुड़ा सारा डाटा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) की वेबसाइट पर आमजन के लिए उपलब्ध रहेगा।