उत्तरप्रदेश में एक ऐसा मामला सामने आये है जिसने न्यायपालिका और देश में न्याय पर ही प्रश्न खड़े कर दिए है। दरअसल यहाँ बेगुनाह होने के बाद 20 वर्ष जेल में रहे विष्णु तिवारी को केंद्रीय कारागार से रिहा किया गया है। वह विष्णु तीन साल ललितपुर जेल और 17 साल यहां केंद्रीय कारागार में बंद रहा। बता दे ललितपुर जनपद के थाना महरौली के गांव सिलावन के रहने वाले 46 वर्षीय विष्णु के खिलाफ वर्ष 2000 में दुष्कर्म एवं एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज हुआ था। वह तभी से जेल में था। अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाने के बाद अप्रैल 2003 में उसे केंद्रीय कारागार, आगरा में स्थानांतरित यानी शिफ्ट कर दिया गया था।
क्या है कोर्ट ने बरी करते हुए ?
जनवरी 2021 में तिवारी को बरी करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा – कि रिकॉर्ड में आए तथ्यों और सबूतों के मद्देनजर हम आश्वस्त हैं कि आरोपी को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया है। इसलिए लगाए गए फैसले और आदेश को उलट दिया जाता है और आरोपी को बरी किया जाता है।। ” अदालत ने इस बात पर भी कड़ा रुख अख्तियार किया कि इतनी लंबी अवधि की अपील के लिए आदमी जेल में कैसे था?
कारावास के इन 20 सालों में विष्णु ने खोया अपना परिवार भी।
विष्णु पांच भाइयों में चौथे नंबर का है। वर्ष 2013 में उसके पिता रामसेवक की मौत हो गई। एक साल बाद ही मां भी चल बसीं। कुछ साल बाद बड़े भाई राम किशोर और दिनेश का भी निधन हो गया, दोनों शादीशुदा थे। फिलहाल विष्णु भी शादीशुदा नहीं है और बता दे जिस वक़्त उसे सजा हुई थी उस वक़्त विष्णु की उम्र केवल 18 वर्ष थी। अब जनवरी में जारी हुए आदेश के बाद विष्णु जेल से रिहा हो चूका है।
कोर्ट ने इस हादसे को बताया दुर्भाग्यपूर्ण ।
केस की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों की 14 साल की सजा पूरी करने के बाद भी रिहाई न होने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। कोर्ट ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिना किसी गंभीर अपराध के कैदी 20 साल से जेल में बंद है और राज्य सरकार रिहाई के लिए बने कानून का पालन नहीं कर रही है। इतना ही नहीं कोर्ट ने विधि सचिव से कहा है कि वह सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी करें कि वे अपने जिलों की जेलों में दस से 14 साल तक की सजा काट चुके बंदियों की रिहाई की संस्तुति सरकार को भेजें।