भाई – बहन के स्नेह और प्यार के त्यौहार रक्षाबंधन पर बहने, भाई की कलाई पर राखी बांधती है। भाई और बहन दोनों को साल इस इस दिन के इंतज़ार बड़ी बेसब्री से रहता है। मगर इस साल सुशांत की सबसे बड़ी बहन रानी, अपने भाई सुशांत को राखी नहीं बाँध सकेंगी, जिसका दुःख और दर्द उन्होंने इस रक्षाबंधन, एक कविता के ज़रिये उतरा है।
सुशांत की बहन ने लिखा-
गुलशन, मेरा बच्चा
आज मेरा दिन है.
आज तुम्हारा दिन है.
आज हमारा दिन है.
आज राखी है.
पैंतीस सालों के बाद ये पहला मौका है जब पूजा की थाल सजी है. आरती का दीया भी जल रहा है. हल्दी-चंदन का टीका भी है. मिठाई भी है. राखी भी है. बस वो चेहरा नहीं है जिसकी आरती उतार सकूं. वो ललाट नहीं है जिसपर टीका सजा सकूं. वो कलाई नहीं जिस पर राखी बांध सकूं.वो मुंह नहीं जिसे मीठा कर सकूं. वो माथा नहीं जिसे चूम सकूं. वो भाई नहीं जिसे लगे लगा सकूं.
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सालों पहले जब तुम आए थे तो जीवन जगमग हो उठा था. जब थे तो उजाला ही उजाला था. अब जब तुम नहीं हो तो मुझे समझ नहीं आता कि क्या करूं? तुम्हारे बगैर मुझे जीना नहीं आता. कभी सोचा नहीं कि ऐसा भी होगा. ये दिन होगे पर तुम नहीं होगे. ढेर सारी चीजें हमने साथ साथ सीखी. तुम्हारे बिना रहना मैं अकेले कैसे सीखूं. तुम्ही कहो.
हमेशा तुम्हारी
रानी दी