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ट्रेनी डॉक्टर के रेप और हत्या का मामला: क्या आजीवन कारावास की सजा पर्याप्त है?

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पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित आरजी कर हॉस्पिटल केस में नया मोड़ आ गया है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में सजा की अपर्याप्तता पर चर्चा करते हुए कहा है कि वह सभी पक्षों को सुनने के बाद ही अंतिम निर्णय लेगा। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब सियालदह अदालत ने ऑन-ड्यूटी ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के दोषी संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

ममता सरकार की अपील

इस सजा को “अपर्याप्त” मानते हुए ममता बनर्जी की सरकार ने कलकत्ता हाई कोर्ट में अपील दायर की है। सरकार का कहना है कि इस घिनौने अपराध में सजा का स्तर ज्यादा कठोर होना चाहिए। जस्टिस देबांग्शु बसाक की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार की इस अपील पर कहा है कि वह पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), पीड़ित के परिवार और दोषी पक्ष के तर्कों को सुनेगी।

सीबीआई की आपत्ति

वहीं, सीबीआई ने राज्य सरकार की अपील पर आपत्ति जताई है। एजेंसी ने कहा है कि चूंकि वह खुद एक अभियोजन एजेंसी है, इसलिए उसे भी सजा की मात्रा पर अपील करने का अधिकार है। सीबीआई ने यह भी दावा किया कि वह इस मामले में अपनी भूमिका को लेकर पूरी तरह सक्रिय है।

सजा और न्याय की बहस

सियालदह अदालत ने इस मामले में केवल एक आरोपी, संजय रॉय, को सजा सुनाई थी। यह फैसला आने के बाद से ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या यह सजा इस जघन्य अपराध के लिए पर्याप्त है? क्या पीड़ित और उसके परिवार को सही मायनों में न्याय मिला? इन सवालों का जवाब अब हाई कोर्ट की सुनवाई पर निर्भर है।

अगली सुनवाई 27 जनवरी को

इस मामले में हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 27 जनवरी की तारीख तय की है। तब तक सभी पक्षों को अपने तर्क प्रस्तुत करने का समय दिया गया है। कोर्ट का यह रुख इस बात का संकेत देता है कि वह मामले की हर परत को ध्यान से परखेगा, ताकि अंतिम निर्णय निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो।

यह मामला न केवल न्याय प्रणाली के प्रति जनता के विश्वास की परीक्षा है, बल्कि यह भी तय करेगा कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में न्यायपालिका कितना सख्त रुख अपनाती है।

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