भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पुष्टि की है कि ऐक्सियम-4 मिशन, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला हिस्सा ले रहे हैं, अब 19 जून 2025 को लॉन्च किया जाएगा। यह ऐतिहासिक मिशन अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष की ओर रवाना होगा। पहले यह मिशन 11 जून को लॉन्च होना था, लेकिन तकनीकी खामियों के चलते इसकी लॉन्चिंग टाल दी गई थी। अब जब सभी समस्याएं हल हो गई हैं, तो इस मिशन को लेकर एक बार फिर उत्साह का माहौल है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि ऐक्सियम-4 मिशन की नई लॉन्चिंग तारीख अब 19 जून तय की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि स्पेसएक्स की टीम ने पहले जिन तकनीकी दिक्कतों के कारण लॉन्च को टालना पड़ा था, उन्हें अब पूरी तरह से ठीक कर लिया गया है। मिशन में देरी की दो प्रमुख वजहें सामने आई थीं—पहली, स्पेसएक्स के फाल्कन-9 लॉन्च व्हीकल में ईंधन रिसाव, और दूसरी, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के रूसी ज़्वेज़्दा मॉड्यूल में दबाव से जुड़ी एक गड़बड़ी। इन दोनों समस्याओं का समाधान अब कर लिया गया है और सभी जरूरी परीक्षण भी पूरे हो चुके हैं।
इस ऐतिहासिक मिशन में चार अंतरिक्ष यात्री हिस्सा ले रहे हैं, जिनमें भारत के शुभांशु शुक्ला भी शामिल हैं। वह इस मिशन में पायलट की भूमिका निभा रहे हैं। उनके साथ अमेरिका की अनुभवी अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन मिशन कमांडर के रूप में होंगी, जबकि पोलैंड के स्लावोश उज़नांस्की-विस्नेवस्की और हंगरी के तिबोर कपु पेलोड स्पेशलिस्ट की भूमिका निभाएंगे। शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो देश के बढ़ते मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह मिशन कुल 14 दिनों तक चलेगा और इस दौरान अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में सात वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिन्हें इसरो ने डिजाइन किया है। इन प्रयोगों का मकसद माइक्रोग्रैविटी यानी सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों को समझना, जीवन विज्ञान से जुड़े शोध करना और तरल पदार्थों की गति को अंतरिक्ष में जानना है। इन रिसर्च से वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर कई नई तकनीकों को विकसित करने में मदद मिलेगी, और साथ ही भारत की वैज्ञानिक क्षमता का प्रदर्शन भी होगा।
शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक सुनहरे अध्याय के रूप में दर्ज की जाएगी। यह मिशन न केवल भारत की वैज्ञानिक महत्वाकांक्षाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान देगा, बल्कि भविष्य में भारतीय गगनयान मिशन जैसी योजनाओं की नींव को और मजबूत करेगा।
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