सुप्रीम कोर्ट ने आज मराठा आरक्षण यानी रिजर्वेशन पर महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका दिया है। देश की शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में मराठों के लिए 16 फ़ीसदी आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इंदिरा साहनी मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की अधिकतम सीमा (50 फ़ीसदी) को पार करती है, लिहाजा यह असंवैधानिक यानी (Unconstitutional) है।
BREAKING : Maratha Quota In Excess Of 50% Ceiling Limit Unconstitutional : Supreme Court https://t.co/SzWUCA3KDq
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पांच सदस्यीय पीठ में ये वकील थे शामिल।
बता दे पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के अलावा न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट भी शामिल थे। बेंच ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघने को समानता के मौलिक अधिकार यानि (Right To Equality) के खिलाफ बताया है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
SC: Amendment grating reservation of 13 percent to Marathas to education and employment is held ultra vires to the constitution and is STRUCK DOWN#SupremeCourt #MarathaReservation
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SC: The amendment which holds Marathas as socially and educationally backward is STRUCK DOWN. #SupremeCourt #MarathaReservation
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क्या है पूरा मामला ?
दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने 50 फीसदी सीमा से बाहर जाते हुए मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का ऐलान किया था। राज्य सरकार की ओर से 2018 में लिए गए इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं, जिन पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाया है। फैसला सुनाते हुए जस्टिस भूषण ने कहा कि वह इंदिरा साहनी केस पर दोबारा विचार करने का कोई कारण नहीं समझते। अदालत ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य सरकारों की ओर से रिजर्वेशन की 50 पर्सेंट लिमिट को नहीं तोड़ा जा सकता।
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SC: We have found that conclusion of Gaikwad commission is unsustainable. we hold that there is extraordinary circumstance to grant reservation to marathas over and above 50 percent #SupremeCourt #MarathaReservation
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2018 में महाराष्ट्र सरकार ने दिया था रिजर्वेशन।
2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16% आरक्षण दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आरक्षण को 2 मुख्य आधारों पर चुनौती दी गई। पहला- इसके पीछे कोई उचित आधार नहीं है। इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया है। दूसरा- यह कुल आरक्षण 50% तक रखने के लिए 1992 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार फैसले का उल्लंघन करता है, लेकिन जून 2019 में हाईकोर्ट ने इस आरक्षण के पक्ष में फैसला दिया।
अब हाई कोर्ट ने तो इस आरक्षण के पक्ष में फैसला दे दिया था लेकिन देश की शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में मराठों के लिए 16 फ़ीसदी आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया है।
समानता के अधिकार के खिलाफ है 50 पर्सेंट की सीमा तोड़ना – जस्टिस भूषण
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने केस की सुनवाई करते हुए कहा कि मराठा आरक्षण देने वाला कानून 50 पर्सेंट की सीमा को तोड़ता है और यह समानता के खिलाफ है। इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार यह बताने में नाकाम रही है कि कैसे मराठा समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा है।
इंदिरा साहनी फैसले पर भी पुनर्विचार की जरूरत नहीं: – देश की उच्चतम न्यायलय।
इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दायर उन हलफनामों पर भी गौर किया गया कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी फैसले (इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है) पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी निर्धारित की गई थी। जस्टिस भूषण ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि जहां तक बात संविधान की धारा 342ए का सवाल है तो हमने संविधान संसोधन को बरकरार रखा है और यह किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है।
Supreme Court: We do not find reason in revisiting Indira Sawhney judgment
Amendment which holds Marathas as socially and educationally backward is STRUCK DOWN#SupremeCourt #MarathaReservation #Reservation pic.twitter.com/CNEILDu5HL
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