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मॉब लिंचिंग पर ‘चुनिंदा आलोचना’ के विरोध में कंगना, प्रसून जोशी समेत 62 दिग्गजों ने पीएम मोदी लिखा खुला खत

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अभिनेता कंगना रनौत, सीबीएफसी प्रमुख प्रसून जोशी और शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह सहित 62 हस्तियों ने “चयनात्मक आक्रोश और झूठे आख्यानों” के विरोध में प्रधानमंत्री मोदी को एक खुला पत्र लिखा है.

इस खत को लिखने वाली हस्तियों में बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत, गीतकार प्रसून जोशी, क्लासिकल डांसर और सांसद सोनल मानसिंह, वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट, फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर और विवेक अग्निहोत्री शामिल हैं.

हाल ही में 49 लोगों ने मोदी सरकार के कार्यकाल में हो रही भीड़ हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. जिसपर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आई थीं. अब 62 हस्तियों ने उस पत्र का काउंटर करते हुए इसे ‘चुनिंदा आक्रोश और झूठा आख्यान’ बताते हुए खुला खत लिखा है.

खुला पत्र लिखने वाले 62 शामिल हस्तियों में अभिनेत्री कंगना रनौत भी शामिल हैं. उन्होंने कहा है, ‘कुछ लोग अपनी पॉवर का दुरुपयोग कर रहे हैं, ताकि लोगों तक किस तरह ये संदेश पहुंचाया जा सके कि इस सरकार में सबकुछ गलत हो रहा है, जबकि ऐसा नहीं है पहली बार चीजें सही दिशा में जा रही हैं. हम एक बड़े बदलाव का हिस्सा हैं, देश की बेहतरी के लिए चीजें बदल रही हैं और कुछ लोग इससे झुंझलाहट में हैं. आम लोगों ने अपने नेताओं को चुना है। जो लोगों की इच्छा की अवहेलना करते हैं वे लोकतंत्र के लिए कोई सम्मान या विचार नहीं रखते हैं.’

वहीं फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर ने कहा है कि, ‘जब लोगों को ‘जय श्री राम’ कहने के लिए जेल में डाल दिया जाता है या जब दिल्ली में एक मंदिर पर हमला किया जाता है तो वे (49 लोग जिन्होने पीएम को लिखा पत्र) कुछ नहीं बोलते हैं. दरअसल देश में वैकल्पिक नाराजगी चल रही है.

62 हस्तियों द्वारा लिखे गए इस पत्र में लिखा है, “23 जुलाई 2019 को प्रकाशित एक खुला पत्र, जो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित था, ने हमें आश्चर्यचकित कर दिया है. राष्ट्र के और लोकतांत्रिक मूल्यों के 49 स्वयंभू अभिभावकों ने एक बार फिर से चयनात्मक चिंता व्यक्त की है और एक स्पष्ट राजनीतिक पूर्वाग्रह और मकसद का प्रदर्शन किया है.”

पत्र में लिखा गया है, “इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि पर कलंक लगाना और सकारात्मक राष्ट्रवाद और मानवतावाद की नींव पर शासन को प्रभावी बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के अथक प्रयासों को नकारात्मक रूप से चित्रित करना है.”

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बता दें कि 23 जुलाई को अभिनेता-अभिनेत्री, फिल्मकार, सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहासकार समेत विभिन्न क्षेत्रों के 49 बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम असहिष्णुता को लेकर खुला पत्र लिखा था, जिसमें दलित व अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ती हिंसा पर प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की गई थी.

प्यारे प्रधानमंत्री, हम शांति के पक्षधर और देश पर गर्व महसूस करने वाले लोग हाल के दिनों में हमारे प्यारे मुल्क में घटी दुखद घटनाओं को लेकर फिक्रमंद हैं.

हमारे संविधान में भारत को धर्म निरपेक्ष सामाजिक लोकतंत्रिक और गणतांत्रिक बताया गया है, जहां हर नागरिक, फिर वो चाहे किसी भी धर्म, नस्ल, लिंग या जाति का हो वो बराबर है. इसलिए हर नागरिक को मिले संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

– मुसलमानों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों की लिंचिंग को तुरंत रोका जाए. हम एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) की रिपोर्ट्स देख कर हैरान हैं कि साल 2016 में दलितों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 840 मामले सामने आए थे, और इन मामलों में आरोप साबित होने का प्रतिशत लगातार गिरा है.

1 जनवरी 2009 से लेकर 26 अक्टूबर 2018 के (फैक्ट चेकर इनडाटाबेस. 30 अक्टूबर, 2018) दरमियान धार्मिक पहचान के आधार पर हेट क्राईम (नफरत आधारित अपराध) के 254 रिपोर्ट्स आईं, जिसमें 91 लोगों को मार दिया गया और 579 लोग घायल हुए। द सिटिज़ंस रिलीजियस हेट क्राईम वॉच ने ये रिकॉर्ड किया है कि 62 फीसदी मामलों में पीड़ित मुस्लिम हैं (भारत की आबादी में 14 फीसदी मुस्लिम आबादी है) और ईसाईयों के खिलाफ इस तरह के अपराध के 14 फीसदी ( भारत की आबादी में 2 फीसदी ईसाई आबादी है) मामले सामने आए हैं. लगभग 90 फीसदी हमलों के मामले मई 2014 के बाद के हैं. जब आपकी सरकार देश की सत्ता पर काबिज़ हुई.

प्रधानमंत्री जी आपने संसद में कुछ लिंचिंग की घटनाओं की आलोचना की है, लेकिन ये काफी नहीं है. अपराधियों के खिलाफ हकीकत में किस तरह का एक्शन लिया गया है? हम ये दृढ़ता से महसूस करते हैं कि इस तरह के अपराध को गैर-ज़मानती घोषित कर देना चाहिए और ये कड़ी सज़ा जल्द और निश्चित तौर पर मिलनी चाहिए. अगर हत्या के मामलों में बिना पेरोल के उम्रकैद की सज़ा दी जा सकती है, तो लिंचिंग के मामलों में क्यों नहीं ? जोकि और भी जघन्य है. अपने ही देश में किसी भी नागरिक को डर के साए में नहीं जीना चाहिए.

खेद जताते हुए कहना पड़ रहा है कि आज “जय श्री राम” एक उकसाने वाला ‘नारा’ बन गया है, जिससे कानून व्यवस्था के लिए दिक्कतें पैदा हो रही हैं। कई लिंचिंग इसी के नाम पर हुई हैं. ये हैरान करने वाली बात है कि हिंसा की इतनी घटनाएं धर्म के नाम पर हो रही हैं. ये मध्य युग नहीं है। भारत के बहुसंख्यक समुदाय के ज्यादातर लोगों के लिए राम का नाम पहुत पवित्र है. इस देश के सर्वोच्च कार्यकारी होने के नाते आपको राम के नाम को इस तरह से बदनाम होने से रोकना चाहिए.

असहमति के बिना कोई लोकतंत्र नहीं होता. क्योंकि लोग सरकार से असहमति रखते हैं, इसके लिए उन्हें एंटी नैशनल या अर्बन नक्सल कहकर कैद नहीं किया जा सकता है. भारत के संविधान का आर्टिकल 19 बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हिफाज़त करता है, असहमति इसका अभिन्न अंग है.

सत्तारूढ़ पार्टी की आलोचना करने का मतलब देश की आलोचना नहीं है. सत्ता पर काबिज़ कोई भी पार्टी उस देश का पर्याय नहीं हो सकती, जहां वो पावर में है. वो सिर्फ उस देश की कई राजनैतिक पार्टियों में से एक होगी. इसलिए सरकार के खिलाफ कोई खड़ा होता है, तो उसे देश के खिलाफ खड़े होने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. एक खुला माहौल, जहां असहमति को दबाया नहीं जाता हो, सिर्फ उसी से देश मज़बूत होता है. हम उम्मीद करते हैं कि हमारे सुझावों को उसी जज़्बे के साथ लिया जाए, जैसे की ये हैं, एक भारतीय के तौर पर जो कि हकीकत में इन चीज़ों को लेकर फिक्रमंद है और इसको लेकर बेचैन है, हमारे मुल्क की किस्मत.”