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डीआरडीओ की बड़ी कामयाबी, हाइपरसोनिक स्क्रैमजेट इंजन का किया सफल परीक्षण

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रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आज स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम का प्रयोग करते हुए हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इसकी जानकारी खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साझा की।

रक्षामंत्री का कहना है कि इस सफलता के बाद अब अगले चरण की प्रगति शुरू हो गई है। वहीं, इस मौके पर रक्षा मंत्री ने डीआरडीओ और इसके वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि संस्थान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में जुटा है।

उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘डीआरडीओ ने आज स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम का उपयोग कर हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इस सफलता के साथ, सभी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां अब अगले चरण की प्रगति के लिए स्थापित हो गई हैं।

अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश।

बता दे अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश बन गया है, जिसने खुद की हाइपरसोनिक तकनीक विकसित कर ली है और इसका सफलतापूर्वक परीक्षण भी कर लिया है।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आज ओडिशा तट के पास डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कॉम्पलेक्स से मानव रहित स्क्रैमजेट हाइपरसोनिक स्पीड फ्लाइट का सफल परीक्षण किया। हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली के विकास को आगे बढ़ाने के लिए यह परीक्षण एक बड़ा कदम है।

क्या कहना है DRDO का।

डीआरडीओ ने कहा कि यह परीक्षण अधिक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों, सामग्रियों और हाइपरसोनिक वाहनों के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में रखता है, जिन्होंने इस तकनीक का प्रदर्शन किया है।

क्या है हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोनट्रेटर वाहन।

गौरतलब है की भारत में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी का सबसे पहला परीक्षण 2019 में किया गया था। इस तकनीक का इस्तेमाल हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने और काफी कम खर्च में सैटेलाइन लॉन्च करने में किया जाएगा। साथ ही हाइपरसोनिक और लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों के लिए यान के तौर पर भी इसका प्रयोग किया जाएगा।

हाइपरसोनिक टेक्नोलजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली विकसित करने संबंधी भारत के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का हिस्सा है। भारत उन कुछ चुनिंदा देशों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है, जहां इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। फिलहाल, अमेरिका, रूस और चीन के पास ये तकनीक है।

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