कोरोना वायरस की महामारी के खिलाफ ‘जंग’ लड़ रहे डॉक्टरों व चिकित्साकर्मियों को बेहतर सुविधाएं देने की याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पंहुचा था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है की इस तरह की घटनाएं दोबारा नहीं होनी चाहिए.
देश की उच्च अदालत ने ये भी कहा की केंद्र सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया है कि डॉक्टरों का वेतन काटा नहीं जाएगा और चीफ सेकेट्री ये सुनिश्चित करेंगे, ऐसा नहीं करने पर उन्हें कड़ी सजा मिलेगी. केंद्र सरकार की ओर से मामले में पेश होते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि डॉक्टरों को वेतन का भुगतान न करना एक आपराधिक अपराध माना जाएगा और सजा को आकर्षित करेगा।.आदेशानुसार प्रत्येक राज्य के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि सभी डॉक्टरों को उनके वेतन का विधिवत भुगतान किया जाए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ये भी कहा कहा कि हम डॉक्टरों और नर्सों का विशेष ध्यान रख रहे हैं, जहां भी संभव हो, क्वारंटाइन सुविधाएं निकटतम स्थान पर दे रहे हैं, लेकिन प्रयोगशालाओं में पीपीएल की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे सीधे मरीजों से संपर्क नहीं करते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे सैनिकों (डॉक्टरों) को असंतुष्ट नहीं रखा जा सकता. यह भी कहा कि केंद्र सरकार को मेडिकल प्रोफेशनल्स के मुद्दे पर विचार करने के भी निर्देश दिए गए. आपको बता दे की डॉक्टरों के हालात को लेकर आरुषि जैन नामक महिला ने याचिका दायर की थी, इसमें कहा गया था कि “कोरोना के इलाज में जुटे डॉक्टर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी ड्यूटी के बाद होटलों और गेस्ट हाउस में 7 से 14 दिन के लिए क्वारंटाइन में रह रहे हैं”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ तीन महीने से सैलरी न मिलने के कारण डॉक्टरों को हड़ताल पर जाना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने इसपर फटकार लगते हुए कहा की सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए. इस बात का ध्यान रखें कि इन मसलों को कोर्ट के दखल देने की जरूरत ही न पड़े. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को ये भी बताया था कि कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे स्वास्थ्यकर्मियों के पास फुल पीपीई किट नहीं है, इसके चलते वे सीधे मरीजों के सीधे संपर्क में आते हैं, लिहाज स्वास्थ्यकर्मियों को क्वारंटाइन होना पड़ता है.