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फैक्ट चेक: क्या केरल में इस्लामिक संस्थान अपने छात्रों को मंदिरों का पुजारी बनाने के लिए संस्कृत पढ़ा रहे हैं? जाने इस दावे की सच्चाई

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मुस्लिम छात्रों का संस्कृत सीखते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में कक्षा में मुस्लिम छात्रों को संस्कृत श्लोक पढ़ते हुए दिखाया गया है। इसे शेयर करते हुए दावा किया जा रहा है कि केरल में इस्लामिक संस्थान अपने छात्रों को राज्य भर के मंदिरों का पुजारी बनाने के लिए संस्कृत पढ़ा रहे हैं।

एक फेसबुक यूजर ने इसे शेयर करते हुए लिखा, “केरल के मदीरों के लिए अब मुस्लिम पुजारियों की नियुक्ति…केरल में मंदिर के पुजारी पद हासिल करने के लिए मुस्लिम शिक्षक मुसलमानों के एक वर्ग को संस्कृत सीखने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं!”

फेसबुक के वायरल पोस्ट का लिंक यहाँ देखें

इसे फेसबुक और ट्विटर पर काफी शेयर किया गया।

फैक्ट चेक

न्यूज़मोबाइल की पड़ताल में हमने जाना कि वायरल दावा गलत है। असल में मुस्लिम छात्रों को अन्य प्राचीन भाषाओं से परिचित कराने के लिए उन्हें संस्कृत पढ़ाई जा रही है।

वायरल वीडियो के साथ शेयर हो रहे दावे की सच्चाई जानने के लिए हमने पड़ताल की। हमने पहले वायरल वीडियो को कुछ कीफ्रेम्स में तब्दील किया और फिर गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च टूल के माध्यम से खोजना शुरू किया। खोज के दौरान हमें वायरल फुटेज द फोर्थ की 01 नवंबर 2022 की एक विडिओ रिपोर्ट में मिली। रिपोर्ट के मुताबिक केरल के त्रिशूर जिले में एक मुस्लिम शैक्षणिक संगठन एकेडमी ऑफ शरिया एंड एडवांस्ड स्टडीज (एएसएएस) (Academy of sharia and advanced studies)  में संस्कृत पढ़ाई जा रही है।

वीडियो के 4:41 मिनट पर एक व्यक्ति मलयालम में कहता जिसका हिन्दी अनुवाद है, “एएसएएस में पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल करने के पीछे मुख्य कारण अपने धर्म के अलावा अन्य धर्मों के बारे में सीखना है। जब छात्र इस भाषा को समझते और बोलते हैं, तो उन्हें दोनों धर्मों की पौराणिक कथाओं और इतिहास का पता चलता है। पाठ्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को दूसरे धर्म की शिक्षाओं को सीखने में सक्षम बनाना है और इसकी तुलना अपने धर्म से करके यह देखना है कि नए भारत को नई आशा देने के लिए दोनों को एक साथ कैसे लाया जा सकता है।” रिपोर्ट में छात्रों को मंदिर का पुजारी बनने के लिए सिखाई जाने वाली भाषा का कोई जिक्र नहीं है जैसा कि वायरल पोस्ट में दावा किया गया।

एएसएएस की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में  कहा गया है- “संस्कृत, उपनिषद, पुराण आदि पढ़ाने का प्राथमिक उद्देश्य छात्रों के बीच अन्य धर्मों और उनके रीति-रिवाजों की समझ पैदा करना है। एएसएएस के प्रिंसिपल फैज़ी ने शंकर दर्शन का अध्ययन किया है और उनका मानना है कि छात्रों को अन्य धर्मों के बारे में सीखना चाहिए।

आगे पड़ताल में हमे नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट मिली जिसमे इस्लामिक संगठनों द्वारा अपने छात्रों के लिए संस्कृत व्याकरण, भगवद गीता, उपनिषद, महाभारत और रामायण के चुनिंदा हिस्सों को संस्कृत में शामिल करने के बारे में बताया गया है। हालाँकि, इनमें से किसी भी समाचार साइट ने यह नहीं बताया कि एएसएएस (ASAS) ने छात्रों को मंदिरों में पुजारी बनने के लिए संस्कृत पाठ्यक्रम को शामिल किया है।

पड़ताल के दौरान मिले तथ्यों से हमने जाना कि वायरल वीडियो करीब एक साल पुराना है। मुस्लिम छात्रों को अन्य प्राचीन भाषाओं से परिचित कराने के लिए उन्हें संस्कृत पढ़ाई जा रही है।

 

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