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फैक्ट चेक: कब्रिस्तान में शव दफनाने को लेकर हो रहे विवाद के इस वीडियो का वक्फ सशोधन अधिनियम से नहीं है कोई संबंध, जानें पूरा सच

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फैक्ट चेक: कब्रिस्तान में शव दफनाने को लेकर हो रहे विवाद के इस वीडियो का वक्फ सशोधन अधिनियम से नहीं है कोई संबंध, जानें पूरा सच

सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, यह वीडियो कब्रिस्तान में एक शव को दफनाए जाने को लेकर हो रहे विवाद का है। जहां कुछ समुदाय विशेष के लोगों को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि यह शव 3 दिनों से कब्रिस्तान के बहार रखा है और इसे दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। इंटरनेट पर वायरल वीडियो को शेयर कर दावा किया जा रहा है कि यह मामला वक्फ संशोधन अधिनियम के पास होने के बाद का है।

फेसबुक पर वायरल वीडियो को शेयर कर अंग्रेजी भाषा के कैप्शन में लिखा गया है कि “First case after WAQF Bill pass🔥 ab inka khel shuru huwa, mayyath dafnaane nahi de rahe hai”

फेसबुक के वायरल पोस्ट का लिंक यहाँ देखें।

फैक्ट चेक: 

न्यूज़मोबाइल की पड़ताल में हमने जाना कि वायरल वीडियो हालिया दिनों का नहीं।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो को देखने पर हमें इसके पुराने होने की आशंका हुई। जिसके बाद हमने पड़ताल की, इस दौरान हमने सबसे पहले वीडियो को कुछ कीफ्रेम्स में तोड़ा और फिर गूगल लेंस से सर्च किया। खोज के दौरान हमें वायरल वीडियो BHiwandi Miya Bhai नामक फेसबुक प्रोफाइल के पोस्ट में मिला जिसे दिसंबर 22, 2017 को अपलोड किया गया था।

खोज के दौरान मिले उपरोक्त पोस्ट से हमने जाना कि वायरल वीडियो इंटरनेट पर कई दिनों से ही इंटरनेट पर मौजूद है। बता दें कि प्राप्त पोस्ट में वीडियो की कोई सटीक जानकारी नहीं दी गयी थी, लेकिन पोस्ट से यह साफ़ था कि वायरल वीडियो हालिया दिनों का नहीं।

इसके बाद पुष्टि के लिए हमने गूगल पर बारीकी से खोजना शुरू किया। खोज के दौरान हमें Ajaz khan के आधिकारिक फेसबुक प्रोफाइल पर भी वायरल वीडियो मिला, जिसे दिसंबर 22, 2017 को अपलोड किया गया था। हालांकि यहाँ भी वायरल वीडियो की कोई सटीक जानकारी नहीं मिली लेकिन यह साफ़ हो गया कि वायरल वीडियो हालिया दिनों का नहीं।

गौरतलब है कि वक्फ संशोधन बिल 2025 संसद के दोनों सदनों में पारित विधेयक को राष्टपति ने 5 अप्रैल को मंजूरी दी है।जिसके बाद इसे 8 अप्रैल से लागू कर दिया गया है। बता दें कि कांग्रेस, एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी है।

पड़ताल के दौरान मिले तथ्यों से हमने जाना कि वायरल वीडियो हालिया दिनों का नहीं बल्कि साल 2017 के दौरान का है। जिसे हालिया दिनों में भ्रामक दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।

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