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लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने उठाया ‘कच्चातिवु द्वीप’ का मुद्दा, जानिए क्या है पूरा मामला और विवाद

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लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने उठाया ‘कच्चातिवु द्वीप’ का मुद्दा, जानिए क्या है पूरा मामला और विवाद

 

कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है। बीते सोमवार को विदेश मंत्री एस. जय शंकर ने इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विस्तार से चर्चा की। इस दौरान उन्होंने कई कांग्रेस और तमिल नाडु की DMK सरकार पर कई बड़े आरोप भी लगाए थे। विदेश मंत्री और भाजपा नेता डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि …कांग्रेस और DMK ने इस मामले को इस तरह से लिया है मानो इस पर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है।”

दरअसल, यह मुद्दा तब चर्चा में आया जब तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई द्वारा कच्चातिवु मामले से जुड़ी एक दायर आरटीआई पर जवाब आया है। आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि सन 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था। इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था।

आरटीआई के जवाब के बाद से ही यह मुद्दा चर्चा में आया और अब भाजपा इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और DMK पार्टी पर हमलावर है। भाजपा अब पूर्ण जोर तरीके से इसे मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने में जुटी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर विदेश मंत्री ने इस मुद्दे को जोर से उठाया है। पीएम ने कहा है कि भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है।

तो क्या है यह कच्चातिवु द्वीप मामला? आइये जानते हैं- 

कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में 285 एकड़ हरित क्षेत्र में फैला एक छोटा सा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। यह साल 1976 तक भारत का था। लेकिन बाद में, श्रीलंका और भारत के बीच यह एक विवादित क्षेत्र बन गया, जिस पर आज श्रीलंका हक जताता है।

गौरतलब है कि साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों के बाद कुछ कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया। साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।

तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी।

क्या है कच्चातिवु द्वीप विवाद ?

साल 1974 में दोनों नेताओं के बीच हुए इस समझौते को तमिलनाडु की तमाम सरकारों ने अपना विरोध जताया और श्रीलंका से इस द्वीप को दोबारा प्राप्त करने की मांग उठाती रहीं। ऐसे में साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया जिसके जरिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग भी की गई थी।

2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और कच्चातिवु समझौतों को रद्द करने की अपील की। उन्होंने कहा था कि श्रीलंका को कच्चातिवु उपहार में देने वाले देशों के बीच दो संधियां असंवैधानिक हैं। इसके अलावा साल 2011 में जयललिता ने एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया।

मई 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एक समारोह में मांग की थी कि कच्चातिवु द्वीप को भारत में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार अप्रभावित रहें, इसलिए इस संबंध में कार्रवाई करने का यह सही समय है।