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पुडुचेरी में राज्य सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई तक टाली सुनवाई

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उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उपराज्यपाल (एलजी) और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की निर्वाचित सरकार के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष के मामले में सुनवाई 10 जुलाई तक के लिए टाल दी है.

एक संक्षिप्त सुनवाई के बाद, जस्टिस दीपक गुप्ता और सूर्यकांत की अवकाश पीठ ने केंद्र और पुडुचेरी एलजी किरण बेदी द्वारा दायर की गई दलीलों को सुनने के बाद सुनवाई को 10 जुलाई तक के लिए ताल दिया. किरण बेदी ने अपनी दलील में मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने दिन-प्रतिदिन के प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप करने की उनकी शक्ति पर अंकुश लगाया था.

कांग्रेस के नेतृत्व वाली पुडुचेरी सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में कहा कि कैबिनेट ने बैठक में तीन फैसले लिए, जिसमें राशन कार्ड धारकों को मुफ्त चावल का वितरण शामिल है, और इसे जारी रखने की अनुमति दी जा सकती है, जैसा कि पिछले 10 वर्षों से हो रहा है.

केंद्र और बेदी के लिए अपील करते हुए, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गरीबी रेखा से नीचे के व्यक्तियों को चावल के वितरण में कोई आपत्ति नहीं है.

4 जून को केंद्रशासित प्रदेश में प्रशासन को लेकर पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी और एलजी किरण बेदी के बीच कहासुनी के बीच शीर्ष अदालत ने निर्वाचित सरकार को निर्देश दिया था कि वह वित्तीय प्रभाव या अधिकारियों के स्थानांतरण से जुड़े किसी भी फैसले को लागू न करे.

अदालत का अंतरिम आदेश बेदी द्वारा दायर एक अर्जी पर आया था, जिसमें यथास्थिति बनाए रखने के लिए अंतरिम निर्देश पारित करने की मांग की गई थी, जैसा कि मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश से पहले था. मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला उनकी निर्वाचित सरकार से स्वतंत्र रूप से कार्य करने की यथास्थिति के खिलाफ आया था.

बेदी की ओर से दायर अर्जी में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले से पहले की यथास्थिति रखने की औचित्य मांग की गई थी कि शीर्ष अदालत द्वारा उसी पर नोटिस जारी किए जाने के बाद उसकी शक्तियों को बरकरार रखा जाए, जो नहीं किया गया था.

उनके द्वारा दायर याचिका में लिखा था,”10 मई, 2019 को दिए गए आदेश के अनुसार, उस स्थिति को 30 अप्रैल, 2019 को लागू किए जाने से पहले की स्थिति के अनुसार स्वामित्व की मांग की गई थी, जिसे पारित किया जाना था. हालांकि यह होना नहीं था.”

10 मई को शीर्ष अदालत ने कांग्रेस विधायक के लक्ष्मीनारायणन को नोटिस जारी किया था, जिनकी याचिका पर उच्च न्यायालय ने 30 अप्रैल को फैसला सुनाया था और अन्य ने केंद्र और किरण बेदी की अपील पर फैसला सुनाया था.

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शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. 30 अप्रैल को, उच्च न्यायालय ने बेदी को केंद्र शासित प्रदेश के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं करने के लिए कहा था, खासकर जब एक निर्वाचित सरकार अपने पद पर हो.

कांग्रेस विधायक के लक्ष्मीनारायण द्वारा दायर याचिका पर कार्रवाई करते हुए, मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास निर्वाचित सरकार के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप करने के अधिकार नहीं हैं और लगातार हस्तक्षेप करने को “समानांतर सरकार” चलाने का मामला माना जाएग.”

उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में, कानूनविद् ने उपराज्यपाल की शक्तियों के बारे में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी दो स्पष्टीकरणों को रद्द करने की मांग की थी. बेदी ने अपने बचाव में, तर्क दिया कि केंद्र शासित प्रदेश में प्रशासन उनकी शक्तियों को सीमित करने वाले आदेश के बाद ठंडा पड़ गया है.