Hindi Newsportal

देश मना रहा है महात्मा गांधी की 154वीं जयंती, यहाँ पढ़ें मोहनदास से राष्ट्रपिता तक के सफर की रोचक कहानी

File Image
0 731
देश मना रहा है महात्मा गांधी की 154वीं जयंती, यहाँ पढ़ें मोहनदास से राष्ट्रपिता तक के सफर की रोचक कहानी

 

देश आज महात्मा गांधी की 154वीं जयंती माना रहा है। इस अवसर पर देशवाशी उन्हें याद कर रहे हैं। वहीं देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति समेत सभी दिग्गज नेताओं ने राजघाट पर महात्मा गांधी को पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को  गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।

मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा कहा जाता है। वो एक कुशल राजनेता थे, जिन्होंने अंग्रेज़ों की हुकूमत से भारत को आज़ाद कराने की लड़ाई लड़ी और ग़रीब भारतीयों के हक़ में आवाज उठाई। सत्य और अहिंसा का उनका सिखाया हुआ सबक़ आज भी पूरी दुनिया में सम्मान के साथ याद किया जाता है।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। इस लेख में हम उनके मोहनदास से राष्टपिता तक के बनने के सफर के बारे में पढ़ेंगे:-

दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलन की क़ामयाबी के बाद मोहनदास गांधी एक विजेता के तौर पर स्वदेश लौटे। भारत आने के बाद मोहनदास गांधी और कस्तूरबा ने तय किया कि वो रेलवे के तीसरे दर्ज़े के डिब्बे में पूरे भारत का भ्रमण करेंगे। इस भारत यात्रा के दौरान गांधी ने अपने देश की ग़रीबी और आबादी को देखा तो उन्हें ज़बरदस्त सदमा लगा। इसी दौरान गांधी ने अंग्रेज़ हुकूमत के लाए हुए काले क़ानून रौलट एक्ट के विरोध का एलान किया। इस क़ानून के तहत सरकार को यह ताक़त मिल गई थी कि वो किसी भी नागरिक को केवल चरमपंथ के शक में गिरफ़्तार कर जेल में डाल सकती थी।

मोहनदास गांधी के कहने पर पूरे देश में हज़ारों लोग इस एक्ट के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे। तमाम शहरों में विरोध-प्रदर्शन हुए। लेकिन, इस दौरान कई जगह हिंसा भड़क उठी। अमृतसर में जनरल डायर ने 20 हज़ार लोगों की भीड़ पर गोली चलवा दी, जिस में चार सौ से ज़्यादा लोग मारे गए और 1300 से अधिक लोग ज़ख़्मी हो गए। इस हत्याकांड के बाद गांधी को ये यक़ीन हो गया कि उन्हें भारत की आज़ादी का आंदोलन शुरू करना चाहिए।

इसके बाद महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता के कई आंदोलन किए। इसमें सत्याग्रह और खिलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह, डांडी यात्रा और भारत छोड़ो आंदोलन आदि शामिल है। गांधी जी ने देश की आजादी की लड़ाई में अहिंसा की सिद्धांत अपनाया। इसके बाद भारतीयों के बीच बढ़ती आज़ादी की मांग तेज़ हो गयी।  आख़िरकार, मजबूर होकर ब्रिटिश सरकार ने भारत की आज़ादी के लिए चर्चा करनी शुरू की और 1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिल गयी।  लेकिन आजादी के दौरान अंग्रजों ने भारत का विभाजन कर के भारत और पाकिस्तान नाम के दो स्वतंत्र देश बनाए

ये बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था। राजधानी दिल्ली में जिस वक़्त देश आज़ादी का जश्न मना रहा था।  लेकिन, एकजुट देश का गांधी का सपना बिखर गया था। बंटवारे की वजह से बड़े पैमाने पर हत्याएं और ख़ून-ख़राबा हुआ. क़रीब एक करोड़ लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। दुखी होकर गांधी दिल्ली शहर छोड़ कर कलकत्ता रवाना हो गए, ताकि हिंसा को रोक कर वहां शांति स्थापित कर सकें।

भारत को अंग्रेजों से आजाद करनवाने के बाद महात्मा गांधी ने भारतीय समाज के साथ सामाजिक और आर्थिक सुधार के लिए काम किया और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। उन्होंने सच्चाई, संयम और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। आजादी की लड़ाई में गांधी जी ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। उनके लिए सादगी पूर्ण जीवन ही सौन्दर्यता थी। गांधी जी का जीवन एक साधक के रूप में भी मशहूर है।

महात्मा गांधी को “राष्ट्रपिता” कहने का स्रोत पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। सुभाष चंद्र बोस ने 4 जून 1944 को सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए राष्ट्रपिता कहा था। बोस ने गांधी को “राष्ट्रपिता” कहकर सम्मानित किया था क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान था और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। उसके बाद से “राष्ट्रपिता” का उपयोग महात्मा गांधी के सम्मान में आम तौर से किया जाने लगा।