कृषि से संबंधित दो अध्यादेशों को बीते दिन लोकसभा में दिन 5 घंटे चली लंबी बहस के बाद पारित हो गए है. कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य, सवर्धन और विधेक-2020 (Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020) और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा (Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Bill, 2020)अब लागू हो चुका है. ऐसे में इसके पास होने के फौरन बाद भाजपा को विपक्षियों के साथ साथ अपने सहयोगियों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. इसी बीच बिल पारित होने के बाद भाजपा की सहयोगी दल की मंत्री हरसिमरत कौर ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. वहीं विपक्ष ने सदन से वॉकआउट कर लिया.
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी की प्राथमिकता में हमेशा गाँव, गरीब व किसान रहा है। उनके द्वारा लिया गया हर फैसला देश हित में होता है।
किसान बिल 2020 भी इसी दिशा में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने वाला है।
झूठ से बचें…#JaiKisan #AatmaNirbharKrishi pic.twitter.com/NiRmjf5SKH
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 18, 2020
कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य, सवर्धन और विधेक-2020 (Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020)
इस बिल को लेकर सरकार का दावा है कि इसमें ऐसा तंत्र विकसित हो जहां किसान मनचाहे स्थान पर फसल बेच सकें. इसके जरिए किसान अपनी फसल का सौदा सिर्फ अपने ही नहीं बल्कि दूसरे राज्य के लाइसेंसी व्यापारियों के साथ भी कर सकते हैं. यानी एक ऐसा माहौल तैयार किया जाएगा, जहां किसान और व्यापारी किसी भी राज्य में जाकर अपनी फसलों को बेच और खरीद सकेंगे. इस बिल के मुताबिक जरूरी नहीं कि आप राज्य की सीमाओं में रहकर ही फसलों की बिक्री करें. साथ ही बिक्री लाभधायक मूल्यों पर करने से संबंधित चयन की सुविधा का भी लाभ ले सकेंगे.
कुछ राजनीतिक दलों द्वारा झूठ फैलाकर, देश की जनता को गुमराह करने का असफल प्रयास किया जा रहा है।
कृषि बिल 2020 पूरी तरह से किसान हितैषी और उनकी आय में वृद्धि करने के लिये उठाया गया मोदी सरकार का एक महत्वपूर्ण कदम है।
झूठ को पहचानें, सच का साथ दें…#JaiKisan pic.twitter.com/C9T5UaVD4v
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 18, 2020
सरकार ने ये रखा पक्ष।
सरकार का दावा है कि इस नीति के जरिए जिन इलाकों में किसानों के पास अतिरिक्त फसल है, उन राज्यों में उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी. इसी तरह जिन राज्यों में कमी है, वहां उन्हें कम कीमत में वस्तु मिलेंगी.
अभी यह है दिक्कत
कृषि मंत्रालय के मुताबिक अभी की व्यवस्था में किसानों के पास अपनी फसलों को बेचने के लिए अधिक विकल्प मौजूद नहीं हैं. किसान रजिस्टर्ड लाइसेंसी या राज्य सरकार को ही फसल बेच सकते हैं. दूसरे राज्य में या ई-ट्रेडिंग के जरिए फसल नहीं बेच सकते. बेचने के अवसर कम होने से लाभ के अवसर भी सीधे तौर पर कम हो जाते हैं.
मैं देश के किसानों को स्पष्ट संदेश देना चाहता हूं। आप किसी भी भ्रम में मत पड़िए।
जो लोग किसानों की रक्षा का ढिंढोरा पीट रहे हैं, दरअसल वे किसानों को अनेक बंधनों में जकड़कर रखना चाहते हैं।
वे बिचौलियों का साथ दे रहे हैं, वे किसानों की कमाई लूटने वालों का साथ दे रहे हैं। pic.twitter.com/dZlnxV591F
— Narendra Modi (@narendramodi) September 18, 2020
विरोधियों की दलील – ‘MSP होगी खत्म’
अब इस पर भी विरोधियों का दावा है कि इस नीति के लागू होने के बाद मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी. यह व्यवस्था खत्म हुई तो राज्यों को मंडी शुल्क नहीं मिलेगा. मंडियां खत्म हो गईं, तो किसानों को एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा. मंडी खत्म होने से मार्केट रेगुलरेट नहीं हो पाएगा. इस तरह से किसानों-राज्यों का पूरा ही नुकसान होगा.
अब ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि सरकार के द्वारा किसानों को MSP का लाभ नहीं दिया जाएगा।
ये भी मनगढ़ंत बातें कही जा रही हैं कि किसानों से धान-गेहूं इत्यादि की खरीद सरकार द्वारा नहीं की जाएगी।
ये सरासर झूठ है, गलत है, किसानों को धोखा है : @narendramodi #JaiKisan
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 18, 2020
यह है सरकार का जवाब
इस आपत्ति व उठाए गए सवाल पर प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री सभी साफ तौर पर कह रहे हैं कि मंडी व्यवस्था बनी रहेगी, इस पर कोई असर नहीं पड़ने दिया जाएगा. साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी इस कानून के तहत कोई खतरा नहीं है.
देशभर के किसानों को कृषि सुधार विधेयकों के पारित होने पर बधाई देता हूं।
नए प्रावधानों के लागू होने से किसान अपनी फसल को देश के किसी भी बाजार में मनचाही कीमत पर बेच सकेंगे।
किसान और ग्राहक के बीच जो बिचौलिए होते हैं, उनसे किसानों को बचाने के लिए ये विधेयक रक्षा कवच बनकर आए हैं। pic.twitter.com/nnF4afkPaY
— Narendra Modi (@narendramodi) September 18, 2020
किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा
सरकार का जो दूसरा विधेयक है वह है कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक. इस विधेयक के तहत सरकार का दावा है कि कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को नेशनल फ्रेमवर्क मिलेगा. इससे होगा यहा कि खेती से जुड़ी सारी रिस्क किसानों की नहीं बल्कि उनसे करार करने वालों के सिर होगी. दूसरा बड़ा लाभ होगा कि किसानों को अपने उत्पाद की मार्केंटिंग पर लागत नहीं लगानी पड़ेगी और दलाल खत्म होगें.
किसान और ग्राहक के बीच जो बिचौलिए होते हैं,
जो किसानों की कमाई का बड़ा हिस्सा खुद ले लेते हैं,
उनसे बचाने के लिए ये विधेयक लाए जाने बहुत आवश्यक थे।
ये विधेयक किसानों के लिए रक्षा कवच बनकर आए हैं : @narendramodi #JaiKisan
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 18, 2020
सरकार की कोशिश है कि जो भी एग्री बिजनेस कंपनियां हैं, या होलसेलर्स, एक्सपोर्टर्स और रिटेलर्स हैं किसान उनसे खुद एग्रीमेंट कर आपस में कीमतें तय करेंगे और फसल बेचेंगे. किसानों को फसल का उचित मूल्य मिलेगा.
देश 1947में आज़ाद हो गया था लेकिन किसानों को इस 3 बिल के आने के बाद आज़ादी मिली है अब इसमें विपक्षी पार्टियां लोगों को गुमराह कर रही है और कुछ लोग हो भी रहें,लेकिन हमें उम्मीद है कि धीरे-धीरे लोगों को ये बात समझ आएगी।इस बिल से किसानों को फायदा और तरक्की होगा:हरियाणा के गृहमंत्री pic.twitter.com/gxkzOG58kO
— NewsMobile Samachar (@NewsMobileHindi) September 18, 2020
विवाद होने पर समय सीमा में उसके निपटारे की प्रभावी व्यवस्था होगी. बोनस या प्रीमियम का प्रावधान भी होगा.
सरकार ने दिया है यह जवाब
इस पर विरोधियों ने सवाल उठाए हैं कि अगर विवाद की स्थिति होती है तो किसान कार्पोरेट से लड़ेंगें कैसे. उनके पास संसाधन कम पड़ जाएंगे. इसके साथ उनका सवाल है कि कीमतें कैसे तय की जाएंगी. इनके जवाब में सरकार कह रही है कि एग्रीमेंट सप्लाई, क्वालिटी, ग्रेड, स्टैंडर्ड्स व कीमत से संबंधित शर्तों पर होंगे, विवाद की स्थिति में निपटारा किया जाएगा
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आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
इसके बाद आता है आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक. यह विधेयक 1955 में बनाए गए आवश्यक वस्तु विधेयक के प्रावधानों में बदलाव की व्याख्या करता है. सरकार ने इसके प्रावधानों में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया है.
इसके पीछे तर्क है कि सरकार सामान्य अवस्था में इनके संग्रह करने और वितरण करने पर अपना नियंत्रण नहीं रखेगी. इसके जरिए फूड सप्लाई चेन को आधुनिक बनाया जाएगा साथ ही कीमतों में स्थिरता बनाए रखेगा.
सरकार का यह है तर्क
सरकार का कहना है कि अभी की व्यवस्था में आवश्यक वस्तु अधिनियम के कारण कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, प्रोसेसिंग और एक्सपोर्ट में निवेश कम होने की वजह से किसानों को लाभ नहीं मिल पाता है. अगर फसल जल्दी सड़ने वाली है और बंपर पैदावार हुई है तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है.