चिपको आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना संक्रमण की वजह से आज निधन हो गया है। संक्रमित होने के बाद से एम्स में उनका इलाज चल रहा था जिसके बाद आज उनका निधन हो गया है। उनके निधन पर प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शोक व्यक्त किया है।
पीएम मोदी ने ट्वीट में लिखा, ”श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के हमारे सदियों पुराने लोकाचार को प्रकट किया। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। मेरे विचार उनके परिवार और कई प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति। ”
Passing away of Shri Sunderlal Bahuguna Ji is a monumental loss for our nation. He manifested our centuries old ethos of living in harmony with nature. His simplicity and spirit of compassion will never be forgotten. My thoughts are with his family and many admirers. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 21, 2021
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर दुख व्यक्त किया है।
पहाड़ों में जल, जंगल और जमीन के मसलों को अपनी प्राथमिकता में रखने वाले और रियासतों में जनता को उनका हक दिलाने वाले श्री बहुगुणा जी के प्रयास सदैव याद रखे जाएंगे।
— Tirath Singh Rawat (@TIRATHSRAWAT) May 21, 2021
मैं ईश्वर से दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने और शोकाकुल परिजनों को धैर्य व दुःख सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करता हूं।
— Tirath Singh Rawat (@TIRATHSRAWAT) May 21, 2021
दोपहर 12 बजे ली अंतिम सांस।
बता दे सुंदरलाल बहुगुणा का निधन 94 साल की उम्र में हुआ है। कोरोना संक्रमण के बाद से वह ऋषिकेश एम्स में भर्ती थे। अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक आज दोपहर 12 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली है। सुंदर लाल बहुगुणा को कोरोना के साथ ही निमोनिया भी हो गया था। उन्हें सिपेप मशीन सपोर्ट पर रखा गया था और उनका ऑक्सीजन सेचूरेशन लेवल 86 फीसदी पर आ गया था। एम्स में चिकित्सक उनके ब्लड शुगर लेवल और ऑक्सीजन लेवल को संतुलित करने में जुट थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। वह डायबिटीज के मरीज भी थे।
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कौन थे सुंदरलाल बहुगुणा ?
गौरतलब है कि महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया, जिसने पूरे देश में अपना एक व्यापक असर छोड़ा। इसी दौरान शुरू हुआ चिपको आंदोलन भी इसी प्रेरणा से शुरू किया गया अभियान था। तब गढ़वाल हिमालय में पेड़ों की कटाई के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाया गया। मार्च 1974 को कटाई के विरोध में स्थानीय महिलाएं पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गईं, दुनिया ने इसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना।
बता दे महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय के बचाव का काम शुरू किया था और उसके लिए ही जिंदगीभर आवाज़ उठाई, यही कारण है कि उन्हें हिमालय का रक्षक भी कहा जाता है।