दिल्ली में अब श्मशान घाटों में दाह संस्कार में लकड़ियों की जगह गाय के गोबर से बने लट्ठों का इस्तेमाल किया जाएगा। दरअसल यह प्रस्ताव दक्षिणी दिल्ली नगर निगम हुई सदन की बैठक में प्रस्ताव पारित कर दिया गया है। इस प्रस्ताव के बाद अनामिका ने बताया कि श्मशान घाट में दाह संस्कार के लिए लकड़ियों के साथ-साथ उपलों की भी व्यवस्था है।
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के श्मशान घाटों में गाय के गोबर से बने लकड़ी के रूप में बड़े लट्ठों की व्यवस्था करने का प्रस्ताव पास किया गया है। गोबर से बने लट्ठों का शुल्क लकड़ियों के मुकाबले कम होगा। इससे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर भी अंतिम क्रिया में अधिक बोझ नहीं पड़ेगा।
— Anamika Mithilesh Singh Mayor SDMC (@AnamikaMBJP) January 23, 2021
SDMC के तहत आने वाले शमशान घात में लागू होगा नियम।
इस प्रस्ताव पर हाल ही में निगम ने एक बयान जारी कर बताया था कि अंतिम संस्कार में लकड़ियों के इस्तेमाल की बजाए उपलों के इस्तेमाल के प्रस्ताव को एसडीएमसी की बैठक के दौरान मंजूरी दे दी गई है। बता दे यह फैसला एसडीएमसी के तहत आने वाले श्मशान घाटों पर लागू होगा।
— SDMC Official (@OfficialSdmc) January 24, 2021
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चिता को जलाने के लिए एक क्विंटल से अधिक लकड़ी का हो जाता है इस्तेमाल।
इस मामले में महापौर अनामिका का कहना है कि श्मशान घाटों पर लकड़ी, उपले और पराली का प्रबंध रहता है लेकिन उपलों यानी कंडों के आकार छोटे होने की वजह से लोग लकड़ियों के इस्तेमाल को ज़्यादा तवज्जो देते हैं ।
इसीलिए लिया ये निर्णय।
इस निर्णय के बाद महापौर का कहना है कि चिता को जलाने के लिए एक क्विंटल से अधिक लकड़ी लग जाती है, इससे पर्यावरण को भी हानि पहुंचती है। इतना ही नहीं लकड़ी से अंतिम संस्कार करने में लगभग पाँच से छह घंटे का समय लगता है जबकि गाय के गोबर के उपलों से महज़ तीन घंटे का समय ही लगेगा।
इतना ही नहीं महापौर ने ये भी कहा कि एक व्यक्ति अपने जीवन से लेकर मृत्यु तक 20 पेड़ों का इस्तेमाल कर लेता है। वहीं, मृत्यु के बाद भी चिता जलाने के लिए अधिक लकड़ियों की आवश्यकता होती है। इसे देखते हुए हमने श्मशान घाट में गाय के गोबर से बने लकड़ी के रूप में बड़े लट्ठों की व्यवस्था करने का प्रस्ताव पास किया गया है।