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उपन्‍यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का 140 वां जन्मदिन आज, देखें उनके गाँव लमही से प्रेमचंद की कहानी

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हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक मुंशी प्रेमचंद की आज जयंती है। उनका हिंदी साहित्य में योगदान का कोई जोड़ नहीं है। उनके लिखे उपन्यास और कहानियों की देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के पाठकों के दिल में एक खास जगह है।मुंशी प्रेमचंद का जन्म साल 1880 में 31 जुलाई को वाराणसी के एक छोटे से गांव लमही में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद ने साल 1936 में अपना अंतिम उपन्यास गोदान लिखा था। जो काफी चर्चित रहा। बता दें कि प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था।

आइये चलते है उनके गाँव लमही जहाँ उनका जन्म हुआ था।

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही महज एक गांव नहीं है, यहां कथा सम्राट की कहानियों का तिलिस्म भी है। वाराणसी जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर वाराणसी-आजमगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पांडेयपुर चौराहे से करीब पांच किलोमीटर का यह रास्ता पूरा होने पर जैसे ही गोदान के होरी-धनिया, पूस की रात के हलकू जैसे किरदारों के जनक मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही का प्रवेश द्वार आता है, उनकी छाप महसूस होने लगती है।

 ईदगाह के हामिद का चिमटा, गोदान का होरी और नमक का दरोगा का नायक…। ऐसा लगता है ये सब आज भी लमही में मौजूद हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों जैसी ही है उनके गांव की कहानी।

उपन्यास सम्राट की अमर कहानियों के बीच उनके बचपन की झलक दिखाता एक गिल्ली डंडा भी है । बचपन में मुंशी प्रेमचंद अक्सर दोस्तों के साथ गिल्ली डंडा खेला करते थे। ये उनका पसंदीदा खेल था।

                   

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सच ये है लमही की पहचान प्रेमचंद हैं और उनकी कहानियों का मर्म यहां की आब-ओ-हवा में घुला है। लमही गांव में मुंशी प्रेमचंद स्मारक स्थल पर प्रेमचंद स्मारक न्यास लमही की एक लाइब्रेरी है।

मुंशीजी के उपन्यासों, कहानियों की यह लाइब्रेरी सिर्फ एक पुस्तकालय तक ही सीमित नहीं है। कोशिश है कि न केवल उनकी किताबों को पढ़ा जाए, बल्कि प्रेमचंद को समझा जाना जाए।

इस लाइब्रेरी में मौजूद गिल्ली डंडा उनके बचपन के इसी पहलू को दिखाता है। इसी तरह यहां रखी पिचकारी भी उनके होली के त्योहार से जुड़े रहने का एहसास कराती है। भला ईदगाह कहानी के हामिद के चिमटे को कौन भूल सकता है। हामिद ने खिलौनों के बजाय इसे अपनी दादी के लिए खरीदा था।

उपन्यास सम्राट की ‘कर्मभूमि’ कागज तो ‘रंगभूमि’ कैनवास थी। न जाने कितने कागजों पर उन्होंने ‘निर्मला’ रंगी और ‘गोदान’ में न जाने कितने शब्दों का दान किया। उनके उपन्यासों में शब्दों और भाव की कहीं कमी नहीं थी। मुंशी प्रेमचंद ने 56 वर्षों तक साहित्य की सेवा तमाम मुश्किलों के ‘सदन’ में रहकर की।

                                     

उनके 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, तीन नाटक, 10 पुस्तकों का अनुवाद, सात बाल साहित्य और न जाने कितने लेख इस बात की गवाही देते हैं कि उस समय अंधविश्वास कितना चरम पर था। सामाजिक और आर्थिक प्रोब्लेम्स को झेलते हुए उन्होंने दैनिक जीवन की तमाम दुश्वारियों को अपनी लेखनी से कहानियों में ढाल दिया।

प्रेमचंद की चर्चित कहानियां : मंत्र, नशा, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, बूढ़ी काकी, बड़े भाईसाहब, बड़े घर की बेटी, कफन, उधार की घड़ी, नमक का दरोगा, जुर्माना आदि। प्रेमचंद की चर्चित उपन्यास: गबन, बाजार-ए-हुस्न (उर्दू में), सेवा सदन, गोदान, कर्मभूमि, कायाकल्प, मनोरमा, निर्मला, प्रतिज्ञा प्रेमाश्रम, रंगभूमि, वरदान, प्रेमा आदि।

प्रेमचंद जी ने ना केवल अपने उपन्यास, कहानी, लेख से साहित्य में चार चाँद लगाए बल्कि उन्होंने लमही को भी दुनिया से परिचित कराया। भले ही लमही भारत के अंतिम छोर पर खड़ा मगर आज लमही हेरिटेज विलेज घोषित है और साथ ही इस गाँव में आज भी प्रेमचंद की कहानियां ज़िंदा लगती है। लमही में राखी प्रेमचद कि कई चीज़ों ने आज भी प्रेमचंद को लमही में ज़िंदा रखा है।

आज साहित्य के सूरज का जन्मदिन है और उपन्‍यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में योगदान को कभी यही भूलाया जा सकता।

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