नई दिल्ली: बांग्लादेश, भारत का पड़ोसी देश इस वक्त एक बड़े राजनीतिक उलटफेर से गुजर रहा है. आरक्षण को लेकर भड़की हिंसा के बीच बीते दिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर भारत पहुंच चुकी हैं और ढाका में सेना प्रमुख ने सत्ता पर काबिज होने का ऐलान तक कर दिया है. इसके साथ ही उनके 20 साल से अधिक समय के शासनकाल का भी अंत हो गया है. यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश किसी संकट में हो… इससे पहले भी बांग्लादेश का इतिहास आपदाओं के घेरे में रहा है.
तो चलिए जानते हैं कि आखिर कैसा रहा है बांग्लादेश का राजनीतिक इतिहास
1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, बांग्लादेश एक उभरता हुआ राष्ट्र बना. इसके गठन के बाद से, देश को विभिन्न राजनीतिक संकटों का सामना करना पड़ा है.
पाकिस्तान से अलग होने के बाद 7 मार्च 1973 को बांग्लादेश में पहली बार आम चुनाव हुए, बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले शेख मुजीबुर रहमान की अध्यक्षता में अवामी लीग ने चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज की. देश में जनता की सबसे ज्यादा पसंदीदा पार्टी माने जाने के बावजूद आवामी लीग पर चुनाव में धांधली करने और विपक्षी नेताओं के अपहरण की साजिश के आरोप लगे.
15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ जूनियर अधिकारियों ने शेख मुजीब के घर पर टैंक से हमला कर दिया. इस हमले में मुजीब सहित उनका परिवार और सुरक्षा स्टाफ मारे गए. 1975 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानी और पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद देश ने एक गंभीर राजनीतिक संकट का सामना किया. सिर्फ उनकी दो बेटियां शेख हसीना और शेख रेहाना की जान बच पाई थी क्योंकि वो उस समय जर्मनी घूमने के लिए गई हुई थीं.
अगस्त-नवंबर 1975 शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद, खांडकर मुश्ताक अहमद ने अस्थायी अध्यक्ष के रूप में शासन किया. लेकिन उनका शासन भी अस्थिर और विवादित रहा.
1981 में, जियाउर रहमान की हत्या के बाद, उनके डिप्टी अब्दुस सत्तार ने 15 नवंबर को आम चुनाव कराए. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने फिर से 65 प्रतिशत वोट के साथ जीत हासिल की. सेना प्रमुख रहे हुसैन मुहम्मद इरशाद ने 1982 में तख्तापलट करके सत्ता संभाली.
1988 में हुसैन मुहम्मद इरशाद को सत्ता से हटाने की मांग को लेकर बांग्लादेश में एक बार फिर बड़े विरोध प्रदर्शन हुए, इसके चलते 1990 का लोकप्रिय विद्रोह हुआ जिसने हुसैन इरशाद को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया. वहीं 27 फरवरी 1991 को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और भावी राष्ट्रपति शहाबुद्दीन अहमद के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार के तहत सभी प्रमुख दलों ने चुनाव में हिस्सा लिया.
1996 के चुनावों को बांग्लादेश के लगभग सभी विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया, बावजूद चुनाव में बिना किसी प्रतिद्वंदी के BNP ने जीत हासिल की लेकिन सरकार महज़ 12 दिन ही चल पाई. जिसके बाद 12 जून 1996 को बांग्लादेश में एक फिर चुनाव हुए. शेख हसीना ने अपने पिता की खोई हुई विरासत को संभालने के लिए लंबी राजनीतिक लड़ाई लड़ी और आखिरकार 1996 में वो पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं.
2006 में, बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति और हिंसा हुई, जिसके कारण 2007 में एक आपातकाल की स्थिति लागू की गई. सैन्य समर्थित अंतरिम सरकार ने 2008 तक शासन किया. आखिरकार 29 दिसंबर 2008 को बांग्लादेश में एक बार फिर चुनाव हुए, जिसमें 80 प्रतिशत मतदान हुआ. अवामी लीग के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन ने 48 फीसदी वोटों के साथ 230 सीटों के साथ बड़ी जीत हासिल की. जनवरी 2009 में एक बार फिर शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं.