यहाँ जानें क्या होती है कावंड़ यात्रा, कितने कड़े होते हैं इसके नियम, कैसे निकाली जाती है यह यात्रा
देश में हिन्दू मान्यताओं के पवित्र दिनों में से एक माने जाने वाले दिन ‘सावन’ की शुरुआत हो चुकी है। सावन के दिनों हिन्दू धर्म को मानने वाले इन दिनों भगवान भोले नाथ की आराधना करते हैं और भगवान भोलेनाथ के भक्ति में कांवड़ यात्रा भी निकालते हैं। सावन की शुरुआत के साथ ही कावंड़ यात्रा की भी शुरुआत हो जाती है।
सावन की शुरुआत के साथ ही शिव भक्तों में कांवड़ यात्रा को लेकर काफी उत्साह देखने को मिलता है। हर साल लाखों की संख्या में कांवड़ियां हरिद्वार आते हैं और गंगाजल लेकर जाकर अपने अपने क्षेत्र के शिवालयों में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। सावन के हर सोमवार में बेल पत्र से भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा की जाती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त इस महीने कांवड़ लेने भी जाते हैं। इस साल 4 जुलाई यानी आज से कांवड़ यात्रा की शुरू भी हो चुकी है।
बता दें कि सावन का पहला सोमवार व्रत 10 जुलाई को है, दूसरा सोमवार व्रत 17 जुलाई को है, तीसरा सोमवार व्रत 24 जुलाई, चौथा 31 जुलाई, पांचवा 7 अगस्त, छठा 14 अगस्त, सातवां 21 अगस्त, आठवां 28 अगस्त को है।
कैसे हुई कावंड़ यात्रा की शुरुआत
हिन्दू ग्रंथों और शास्त्रों में कांवड़ यात्रा को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। मान्यता है कि सबले पहले श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वह हिमाचल के ऊना में थे तब उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया। जिसके बाद उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार उन्हें कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार लाए और गंगा स्नान कराया। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए। माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
क्या होते हैं इसके नियम
मान्यताओं के अनुसार, यात्रा के दौरान कई तरह के नियमों का पालन करना आवश्यक बताया गया है। कांवड़ यात्रा के नियमों को लेकर किसी भी तरह की ढील नहीं दी गई है और अगर इनको तोड़ा जाता है कि भगवान शिव नाराज भी हो सकते हैं। यहाँ जानिए हैं कांवड़ यात्रा के महत्व और नियम के बारे में और कांवड़ कितने प्रकार की होती है।
कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को नंगे पांव चलना और पैदल यात्रा करनी होती है।
यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन का सेवन करना होता है।
बताया जाता है कि आराम करते समय कांवड़ को जमीन पर नहीं बल्कि किसी पेड़ पर लटकाना होता है।
बता दें कि यदि कोई कावंड़ियाँ अपने कांवड़ को जमीन पर रखते हैं तो आपको दोबारा से गंगाजल भरकर फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है।
स्नान के बाद ही कांवड़ को छुआ जाता है। बिना स्नान के कांवड़ को हाथ नहीं लगाया जाता।
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