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क्या 50 साल पहले सेंसर बोर्ड ने मोहम्मद रफ़ी के गानो पर प्रतिबन्ध लगाया था?

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फेसबुक पर मुहम्मद रफ़ी के 2 गाने वायरल हो रहे हैं और यह दावा किया जा रहा है कि 50 साल पहले सेंसर बोर्ड ने इन गानो को फिल्म से कटवा दिया था |

” सुने मोहम्मद रफी की आवाज़ में यह गीत जो कभी रिलीज़ नहीं हो पाया
पचास साल पहले इस गाने को सेंसर ने कटवा दिया था ! लेकिन क्यों? ” – कैप्शन के साथ गानो को शेयर किया जा रहा है |

क्या थी हकीकत?

न्यूजमोबाइल जब इस खबर की तह तक गया तो हमने पाया कि दोनों गाने – ‘जन्नत की है तस्वीर ये तस्वीर ना देंगे‘ और ‘बेगुनाहों का लहू है ये रंग’ – साल 1966 में रिलीज हुई फिल्म ‘जोहर इन कश्मीर’ के हैं |

हालांकि इन गानो पर सेंसर बोर्ड ने प्रतिबन्ध नहीं लगाया था और दोनों गाने इंटरनेट पर मौजूद हैं |

 

जाँच पड़ताल करने पर हमे 1966 के ‘ भारत के राजपत्र ‘ में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर का आधिकारिक आदेश मिला |

आदेश से यह साफ़ हो गया की गानो पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया था बल्कि ‘जन्नत की है तस्वीर ये तस्वीर ना देंगे’ गाने में शब्दों ‘हाजी पीर’ को हटाया गया था और ‘बेगुनाहों का लहू है ये रंग’ गाने में ‘हैश हुसैन का इन्साफ किया जायेगा’ लाइन को हटाने के आदेश दिए गए थे |

ऊपर दी जानकारी से यह साबित होता है कि यह खबर झूठी है |

हमने इसकी जाँच कैसे की
न्यूज़मोबाइल के झुज़ारू रिपोर्टर हर तथ्य की अच्छी तरह खोज करते हैं. पहले हम गूगल रिवर्स सर्च और कुछ सच मापने के टूलस का उपयोग करते हैं और फिर हमारे खोजी रिपोर्टर उनकी सच्चाई बाहर लाते हैं.

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