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महाराष्ट्र के रंजीत सिंह दिसाले ने जीता ग्लोबल टीचर प्राइज, 7 करोड़ का आधा हिस्सा किया दान

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देश के एक प्राइमरी स्कूल में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उसे तकनीक से जोड़ने की कोशिशों के कारण महाराष्ट्र के एक ग्रामीण शिक्षक को ग्लोबल टीचर प्राइज मिला है। 32 साल के विजेता रंजीत सिंह दिसाले को इसके तहत 10 लाख डॉलर (लगभग 7 करोड़ 38 लाख रुपए) का पुरस्कार मिला और प्रेरणा देने वाली बात ये है कि दिसाले अब इस राशि को आधा हिस्सा अपने साथियों को देने का एलान कर चुके हैं।

देखें वीडियो –

इसीलिए मिला ‘ग्लोबल टीचर प्राइज’।

दरअसल जब दिसाले 2009 में सोलापुर के पारितवादी के जिला परिषद प्राथमिक विद्यालय पहुंचे तब वहां स्कूल भवन जर्जर हालत में था। ये देख उन्होंने चीजें बदलने का जिम्मा उठाया और यह सुनिश्चित किया कि विद्यार्थियों के लिए स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तक उपलब्ध हो।

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मातृभाषा में अनुवाद के लिए लगाया QR कोड।

उन्होंने बच्चों को पढ़ाने का ज़िम्मा तो ले लिया लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये थी कि सारी किताबे लगभग सारी किताबें अंग्रेजी में थीं। तब दिसाले ने एक-एक करके किताबों का मातृभाषा में अनुवाद किया, बल्कि उसमें तकनीक भी जोड़ दी। ये तकनीक थी क्यूआर कोड देना ताकि स्टूडेंट वीडियो लेक्चर अटेंड कर सकें और अपनी ही भाषा में कविताएं-कहानियां सुन सकें। ख़ास बात ये है कि इसके बाद से ही गांव और आसपास के इलाकों में बाल विवाह की दर में तेजी से गिरावट आई।

क्या है ‘ग्लोबल टीचर प्राइज’?

ग्लोबल टीचर प्राइज (Global Teacher Prize) पुरस्कार वार्की फाउंडेशन की तरफ से अयोजित किया जाता है, जिसमें दुनिया भर से उन टीचर्स को सम्मानित किया जाता है जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में खास योगदान दिया हो।

आधी राशि दान करने का भी किया एलान।

पुरस्कार की घोषणा के साथ ही रणजीत ने इनाम की आधी राशि 10 उप-विजेताओं के साथ बांटने का ऐलान भी कर दिया है। दरअसल उनका कहना है कि शिक्षक हमेशा देने और बांटने में यकीन करते हैं।

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